जनवरी में सजेगा उत्सवों का गुलदस्ता, राजस्थान में काइट फेस्टीवल, कैमल फेस्टीवल और कैटल फेयर का जमेगा रंग
जयपुर। नए साल का पहला त्यौहार मकर संक्रांति आने को है। ऐसे में इस त्यौहार का लुत्फ उठाने के लिए देश- विदेश से हर साल पर्यटक राजस्थान आते हैं। वहीं इस बार राजस्थान आने वाले पर्यटकों के लिए मकर संक्रांति का यह पर्व और भी ज्यादा खास होने वाला है। क्योंकि इस बार राजस्थान पधारने वाले पर्यटक पतंगबाजी के साथ साथ अन्य आयोजनों लुत्फ उठा सकेंगे।
दरअसल पर्यटन विभाग जयपुर में काइट फेस्टिवल का आयोजन कर रहा है। इसके साथ ही पर्यटन विभाग द्वारा बीकानेर में कैमल फेस्टीवल और नागौर में पशु मेले का आयोजन किया जाएगा। जिससे पर्यटकों को जयपुर, बीकानेर और नागौर की कला-संस्कृति, परंपरागत परिधान, पारंपरिक खान-पान और हस्तशिल्प आदि को नजदीक से देखने का मौका मिलेगा।
काइट फेस्टीवल (14 जनवरी)
गौरतलब है कि पर्यटन विभाग की ओर से जल महल की पाल पर पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है। मकर संक्रांति के दिन जयपुर का आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से गुलजार रहता है। वहीं हर घर पकौडों, तिल की पपडी, तिल के लड्डू, रेवडी और गजक की महक से महक उठता है। इस दिन होने वाली पतंग प्रदर्शनी, पतंगबाजी प्रतियोगिता और फैंसी पतंग प्रतियोगिता आदि सैलानियों को काइट फेस्टीवल की डोर से बांध लेती है। परंपरागत खान -पान जैसे दाल की पकौ़डियां, तिल के लड्डू और फीणी का स्वाद लेने के साथ सैलानियों की निगाहें सवेरे से शाम तक आसमां पर टिकी होती हैं। वे पतंगबाजी के दांव-पेंच देखते हुए लोकधुनों पर थिरकते रहते हैं। शाम को पतंगों के साथ आतिशबाजी के सुंदर नजारों से पूरा शहर रंगीन रोशनी से दमक उठता है।
कैमल फेस्टीवल (13 से 15 जनवरी)

बीकानेर में होने वाले कैमल फेस्टीवल की अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान है। इस फेस्टीवल में प्रदेश के राज्य पशु ऊंट के विभिन्न अंदाज देखने को मिलते हैं। राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित इस फेस्टीवल में इस बार बीकानेर कॉर्निवाल आकर्षण का केंद्र रहेगा। उत्सव में ऊंट दौड़, ऊंटों को सजाने और संवारने की प्रतियोगिताएं, ऊंटों की कलाबाजी के साथ ऊंट के दूध से बने उत्पाद सैलानियों के लिए कौतुहल का विषय रहते हैं। इस उत्सव के दौरान राजस्थानी लोक संगीत और नृत्य की प्रस्तुतियों के बीच राजस्थानी खान-पान की स्टॉल्स सैलानियों को अपनी ओर खींचती है। बता दें कि ऊंटों का सबसे बडा प्रजनन केंद्र बीकानेर शहर ही है। बीकानेर में ही सेना के लिए ऊंटों को यहां पर तैयार किया जाता है। सेना के लिए तैयार किए जाने वाले ऊंटों को आम भाषा में ‘गंगा रिसला’ कहकर पुकारा जाता है।
नागौर पशु मेला (27 से 30 जनवरी)

हर साल जनवरी और फरवरी के महीने के बीच आयोजित किया जाने वाला नागौर का पशु मेला काफी लोकप्रिय है। इस मेले में तकरीबन 10 हजार बैल, ऊंट और घोड़ों का व्यापार होता है। पशुओं को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। यहां तक कि उनके मालिक भी रंग-बिरंगे और परम्परागत वेशभूषा में नजर आते हैं। घोड़े और अन्य पशुओं के अलावा यहां मसाले का भी व्यापार किया जाता है। इस मेले में मिर्ची बाजार (भारत का सबसे बड़ा लाल मिर्च बाजार), लकड़ी की वस्तुओं की बिक्री, लोहे के शिल्प और ऊंट के चमड़े के सामान भी शामिल हैं। मेले के दौरान कई खेल और अन्य प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। इसमें टग-ऑफ-वॉर, ऊंट नृत्य और अश्व नृत्य शामिल हैं।
नागौर मेला अपने बाजीगरों, कठपुतलियों और कहानीकारों आदि के लिए भी प्रसिद्ध है। माना जाता है की कठपुतली कला के जनक भाट जाति के कलाकार नागौर से ही संबंध रखते हैं। नागौर अपने पशुओं विशेषकर बैलों के लिए ख्याति प्राप्त है। यहां के बैलो को देश के विभिन्न प्रान्तों से आए किसान बेहद पसंद करते हैं।