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राजस्थान के मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने उठाई CTH और बफर ज़ोन के दुरुपयोग की आवाज, केंद्र और राज्य सरकार से पुनर्गठन की मांग

09:10 PM Jul 22, 2025 IST | Digital Desk
राजस्थान के मंत्री डॉ  किरोड़ी लाल मीणा ने उठाई cth और बफर ज़ोन के दुरुपयोग की आवाज  केंद्र और राज्य सरकार से पुनर्गठन की मांग

राजस्थान सरकार में कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने टाइगर रिज़र्व क्षेत्रों में क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) और बफर जोन के नाम पर वन विभाग द्वारा ग्रामीणों और जनजातीय समुदायों के अधिकारों के हनन के मामलों को गंभीरता से उठाते हुए, केंद्र सरकार से CTH और बफर क्षेत्र के पुनर्गठन की मांग की है।

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यह मामला विशेष रूप से सवाईमाधोपुर, करौली और अलवर जिलों में टाइगर रिज़र्व के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों से जुड़ा है, जहां ग्रामीणों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने शिकायत की कि CTH क्षेत्र बिना ग्राम सभा की सहमति और बिना उचित वैज्ञानिक व भौगोलिक आधार के घोषित किए गए हैं।

क्या है मुख्य आपत्ति:

डॉ. मीणा ने पत्र में स्पष्ट किया है कि:

  1. टाइगर रिज़र्व के अंतर्गत CTH क्षेत्र घोषित करते समय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की प्रक्रिया का सही पालन नहीं किया गया।
  2. ग्राम सभा की स्वीकृति लिए बिना CTH और बफर जोन घोषित कर दिए गए।
  3. इससे न केवल अनुसूचित जनजातियों, बल्कि अन्य वनाधिकार रखने वाले समुदायों के रोज़गार, रहन-सहन और पारंपरिक अधिकारों का हनन हुआ है।

राजस्थान ही क्यों निशाने पर?

डॉ. मीणा ने यह भी उल्लेख किया कि भारत के अन्य किसी भी राज्य में CTH को राष्ट्रीय उद्यानों या अभयारण्यों के बाहर घोषित नहीं किया गया है, जबकि राजस्थान में दो टाइगर रिज़र्व में ऐसा हुआ है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के दबाव में राज्य सरकार ने नियमों से परे जाकर निर्णय लिए हैं, जिससे व्यापक जनअसंतोष उत्पन्न हुआ है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और कानूनी उल्लंघन:

पत्र में यह भी बताया गया कि:

  • - CTH और बफर ज़ोन जैसे क्षेत्र केवल वैज्ञानिक और पारिस्थितिकीय अध्ययन के आधार पर घोषित किए जाने चाहिए।
  • - बफर ज़ोन का कार्य एक ‘शॉक एब्ज़ॉर्बर’ की तरह होता है, जो वन्यजीव और मानव जीवन के बीच संतुलन बनाता है, लेकिन यहां इसका इस्तेमाल मनमाने तरीके से किया गया।

हाई लेवल कमेटी गठित करने की मांग:

डॉ. मीणा ने मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति (High-Level Committee) बनाई जाए, जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए, ताकि जनता की आवाज़ अधिकारियों तक सीधे पहुंच सके और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा हो सके।

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