काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग: भगवान विष्णु ने की थी तपस्या, सृष्टि की कामना का मांगा था वर
बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित इस मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। हिंदू धर्म में इस मंदिर का एक विशिष्ट स्थान है।ऐसी मान्यता है कि एक बार विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर की महिमा के प्रभाव से आदि शंकराचार्य, गोस्वामी तुलसीदास और संत एकनाथ का यहां आगमन हुआ था।यहां पर संत एकनाथ ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ ,श्री एकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया था।महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि को काशी के प्रमुख मंदिरों से, ढोल -नगाड़ों के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जो विश्वनाथ मंदिर तक जाती है।
विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
वाराणसी में गंगा नदी के तट पर स्थित विश्वनाथ मंदिर का भगवान शिव को समर्पित है।इस मंदिर को विश्वेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार यह मंदिर शिव और पार्वती का आदि स्थान है। शिवलिंग स्थापना की कहानी ये है कि एक बार मां पार्वती अपने पिता के घर मे रह रही थी।जहां उनका मन नहीं लग रहा था। पार्वती ने भगवान शिव को कहा कि मुझे यहां से अपने घर ले चलो । इस पर भगवान शिव उन्हें काशी ले आए और स्वयं को विश्वनाथज्योर्तिलिंग के रुप में यहां स्थापित कर लिया।
रणजीत सिंह ने बनाया सोने का मंदिर
इस मंदिर का जीर्णोद्धार 11 वीं शताब्दी में राजा हरीशचंद्र ने करवाया था ।वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने इसे तुड़वा दिया था। इसके बाद इस मंदिर को फिर बनवाया गया।लेकिन वर्ष 1447 में इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा वर्ष 1780 में करवाया गया था। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इस पर वर्ष 1853 में 1000 किलो ग्राम शुद्ध सोने का बनवाया था।
प्रलय में इसका लोप नहीं होता
सनातन धर्म में यह माना जाता है कि सृष्टि के प्रलय के समय भी इसका लोप नही होता उस समय भगवान शिव इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि के पुन: आने पर त्रिशूल से उतार देते हैं। सृष्टि का प्रारंभ भी यहीं से माना जाता है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि निर्माण की कामना से तपस्या की थी और भोलेनाथ को प्रसन्न किया था। इसके बाद भगवान नारायण के शयन करने पर ,उनके नाभि कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए और उन्होंने सृष्टि की रचना की। अगस्त्य मुनि ने विश्वेश्वर की बहुत आराधना की थी । गुरु वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र भी इनकी कृपा से पूजित हुए।
सावन में उमड़ता है भक्तों का सैलाब
सावन के महिने में यहां कावड़ियों और शिव भक्तों का सैलाब उमडता है। सावन में सबसे पहले काशी के यदुवंशी ,चंद्रवंशी गोप सेवा समिति ,विश्वनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। 1932 से यह पंरपरा अनवरत चली आ रही है।
शिव देते हैं तारक मंत्र का उपदेश
मोक्षदायिनी काशी की ऐसी महिमा है कि यहां प्राण त्यागने पर प्राणी को मुक्ति मिल जाती है। भगवान शंकर मरते हुए प्राणी के कान में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं। जिससे वह जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार जप,ध्यान और ज्ञान से रहित प्राणियों के लिए काशी ही एकमात्र गति का स्थान है।
2021 में हुआ काशी कॉरिडोर
वर्ष 2019 में काशी विश्वनाथ मंदिर का विस्तार कर ,काशी कॉरिडोर का निर्माण किया गया। इसका निर्माण वर्ष 2021 को पूरा हुआ । इसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 13 दिसंबर 2021 को किया गया।इस कॉरिडोर में सर्वप्रथम ललिता घाट के रास्ते भारत माता के दर्शन होते हैं। उसके आगे अहिल्या बाई की मूर्ति है। आगे चलकर ज्ञानवापी में नंदी जी के दर्शन और स्पर्श कर सकते हैं।