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तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में है जम्बुकेश्वर मंदिर, माता पार्वती ने खुद बनाया था यह शिवलिंग

11:55 AM Feb 12, 2023 IST | Supriya Sarkaar

तिरुचिरापल्ली । दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित तिरुचिरापल्ली में स्थापित खास शिव मंदिर ‘जंबुकेश्वर मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। इसके बारे में कहानी मिलती है कि इस मंदिर की दीवारें बनवाने के लिए भोलेनाथ स्वयं आते थे। मंदिर को लेकर यह भी कथा है कि एक बार माता पार्वती ने शिव ज्ञान की प्राप्ति के लिए पृथ्वी पर आकर इसी स्थान पर अपने हाथ से शिवलिंग बनाकर तपस्या की थी। तकरीबन 1800 वर्ष पहले हिंद चोल राजवंश के राजा कोकें गानन ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।

पंच महातत्वों का प्रतिनिधित्व 

यह जंबुकेश्वर मंदिर तमिलनाडु के पांच सबसे प्रमुख शिव मंदिरों में शामिल है। ये पांच मंदिर पंच महातत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें जंबुकेश्वर पानी का प्रतिनिधित्व करता है। जंबुकेश्वर में भूमिगत जल धारा है। इसकी वजह से यहां पानी की कभी कमी नहीं पड़ती। 

कमाल की वास्तुकला 

जंबुकेश्वर मंदिर की वास्तुकला भी कमाल की है। इस मंदिर के अंदर पांच प्रांगण हैं। मंदिर के पांचवें परिसर की सुरक्षा के लिए विशाल दीवारों का निर्माण किया गया है। इसे विबुडी प्रकाश के नाम से जानते हैं। इस मंदिर का निर्माण चोल राजाओं के समय हुआ था। इसलिए यहां 11 से 12 शताब्दी के मध्य के चोल राजाओं से संबधित शिलालेख भी मौजूद हैं।

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एक-दूसरे के विपरीत स्थापित हैं मूर्तियां

जंबुकेश्वर मंदिर में मूर्तियों को एक-दूसरे के विपरीत स्थापित किया गया है। जिन मंदिरों में ऐसी व्यवस्था होती है, उन्हें उपदेशा स्थालम कहा जाता है। क्योंकि इस मंदिर में देवी पार्वती एक शिष्य और जंबुकेश्वर एक गुरु के रूप में मौजूद हैं। इसलिए इस मंदिर में थिरु कल्याणम यानी की शादी-ब्याह नहीं कराया जाता है। चौथे परिसर में एक बड़ा हॉल है और 769 स्तंभ मौजूद हैं। इसके अलावा यहां जल कुंड भी मौजूद है। तीसरे पर सिर में दो बड़े गोपुरम मौजूद हैं। जो 73 और 100 फीट लंबे हैं। मंदिर का गर्भगृह चौकोर है। मंदिर के गर्भगृह की छत पर एक विमान भी मौजूद है। कुल मिलाकर भारतीय संस्कृति और वास्तु कला का एक और बेजोड़ उदाहरण है जम्बुकेश्वर मंदिर।

एक कथा यह भी 

जंबुकेश्वर मंदिर को लेकर एक और कहानी मिलती है। कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने दुनिया के सुधार के लिए की गई शिवजी की तपस्या का मजाक उड़ाया। शिव, पार्वती के इस कृत्य की निंदा करना चाहते थे। उन्होंने पार्वती को कैलाश से पृथ्वी पर जाकर तपस्या करने का निर्देश दिया। 

भगवान शिव के निर्देशानुसार अक्विलादेश्वरी के रूप में देवी पार्वती पृथ्वी पर जंबू वन तपस्या के लिए पहुंची। देवी ने कावेरी नदी के पास वेन नवल पेड़ के नीचे शिवलिंग बनाया और शिव पूजा में लीन हो गईं। बाद में लिंग अप्पुलिंगम के रूप में जाना गया। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने अक्विलादेश्वरी को दर्शन दिए और शिव ज्ञान की प्राप्ति कराई।

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