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क्या Transfer Of Power का प्रतीक नहीं है सेंगोल, महाभारत काल से चली आ रही है इसकी परंपरा

10:56 AM May 27, 2023 IST | Jyoti sharma
क्या transfer of power का प्रतीक नहीं है सेंगोल  महाभारत काल से चली आ रही है इसकी परंपरा

पहले संसद को लेकर तो अब सेंगोल को लेकर विवाद शुरू हो गया है। कांग्रेस के दावे के बाद एक नई बहस चारों तरफ छिड़ गई है कि आखिर सेंगोल सच में पॉवर ट्रांसफर का प्रतीक है या नहीं। ऐसे में सेंगोल के बारे में इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता चलता है कि सेंगोल चोल साम्राज्य से चला आ रहा है। उस समय से ही ये सत्ता के स्थानांतरण का प्रतीक माना जाता है। सेंगोल जिस राजा को स्थानांतरित किया जाता है, वही देश या उस राज्य पर पूर्ण रूप से शासक कहलाता है और शासन करता है।

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इतिहास बताता है कि जिस शख्स का राजा बनते वक्त राज्याभिषेक होता है उस दौरान इसे मुकुट पहनाया जाता था और ये सेंगोल या छड़ी भी उसे थमाई जाती थी जो प्रतीक होता था उस राज्य के पूर्णकालिक शासन का। इस मुकुट और इस सेंगोल को एक अधिकार से जोड़ देखा जाता था कि जिस शख्स के सिर पर ये मुकुट और हाथ में छड़ी या सेंगोल रहता था वही उस देश या राज्य का शासक या अधिकारी होता था। यहां तक कि जब राजा राज्य या देश को लेकर कोई अहम फैसला लेते थे और भरी सभा में काज दरबार में सुनाते थे तो उस वक्त भी उनके हाथों में ये राजदंड या सेंगोल होना अनिवार्य होता था।

भगवान शिव के नटराज मुद्रा में मूर्ति के पास सेंगोल

एक और सबसे अहम बात इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि अगर किसी कार्य विशेष से राजा राज्य या देश से बाहर जाते थे तो अपनी जगह राज्य संभालने की जिम्मेदारी किसी को देकर जाते थे और राजा को ये सेंगोल भी उस व्यक्ति को सौंपना पड़ता था तभी वे पूर्ण रूप से उस राज्य का शासन कर पाता था।

इतिहास में सिर्फ चोल वंश ही नहीं इसके बाद भी मुगलों और अंग्रेजों द्वारा इस सेंगोल का प्रयोग करने का जिक्र मिलता है। जब मुगल भारत में शासन करने आए तो उन्होंने भी इस सेंगोल का प्रयोगकिया। इसके बाद अंग्रेजों ने भी इस सेंगोंल को शासन का प्रतीक मानते हुए इसका प्रयोग किया था। कई ईसाई पोप भी अब इसे धारण करते हैं। पोप फ्रांसिस के हाथों में भी आपने इस राजदंड को अक्सर देखा होगा।

ब्रिटेन के किंग चार्ल्स के पास राजदंड

भारत के महाग्रंथ महाभारत में भी इस सेंगोल का जिक्र मिलता है। जब पांडु पुत्र युधिष्ठिर राजा बनने के लिए तैयार होते हैं तब उनके भाई अर्जुन उन्होंने राजपाठ का महत्व समझाते वक्त इस सेंगोल के बारे में भी बताते हैं। उन्होंने इस राजदंड का महत्व भी युधिष्ठिर को बताया था। जिससे पता चलता है कि राजदंड या सेंगोल का महत्व भारतीय इतिहास में चोल वंश से नहीं बल्कि महाभारत काल और उससे पहले से भी जुड़ा हुआ है।

सिर्फ भारत में ही नहीं इस राजदंड को धारण करने की परंपरा कई देशों में भी है। ब्रिटेन, मिस्र, मेसोपोटामिया, रोम जैसे देशों में राजदंड धारण करने की परंपरा है।

Transfer Of Power का है प्रतीक

सेंगोल के बारे में इतिहास बताता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने साल 1947 में अंग्रेजों से ये सेंगोल स्वीकार किया था। जब भारत को आजादी मिली थी। यह सत्ता के हस्तांतरण यानी Transfer Of Power का प्रतीक है। यह सदियों पुरानी परंपरा है, जिसे तमिल भाषा में सेंगोल कहा जाता है। आजादी के 75 साल बाद भी जनता को इसकी जानकारी नहीं है।

दरअसल सेंगोल को संग्रहालय में नहीं रखा जाता। यह उसके पास रहता है जिसे सत्ता या शक्ति दी जाती है या स्थानानंतरित की जाती है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने सेंगोल के बारे में रिसर्च करवाई हुई है। इसके बाद इसे देश के सामने संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के बगल रखने का फैसला लिया गया। इससे पहले यह सेंगोल इलाहाबाद में रखा हुआ था।

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