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Iraq Crisis : आखिर क्यों मचा है इराक में बवाल, जानिए हिंसा की आग में जल रहे इराक में कितने अहम हैं अल सदर

12:37 PM Aug 30, 2022 IST | Jyoti sharma
iraq crisis   आखिर क्यों मचा है इराक में बवाल  जानिए हिंसा की आग में जल रहे इराक में कितने अहम हैं अल सदर

Iraq Crisis : इराक में इन दिनों जो बवाल मचा हुआ है वो कोई एक दिन में पैदा नहीं हुआ। इस हिंसा की स्क्रिप्ट पर काम काफी दिनों से चल रहा है। और एक तरह से इसके डायरेक्टर खुद वहां के शिया धर्मगुरु अल सदर माने जा सकते हैं। इसके लिए आपको अल सदर के बारे में पूरी जानकारी लेनी होगी।

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ईरान-इराक के संबंध भी जिम्मेदार

वैश्विक परिदृश्य में इराक और ईरान के संबंध बेहद खराब है। शिया धर्मगुरु अल सदर इराक के सबसे बड़े नेता इसलिए बने हैं क्योंकि इनका शुरुआत से एक ही मुख्य एजेंडा रहा है। और वो है ईरान के विरोध का। उन्होंने ईरान के विरोध का झंडाबरदार भी कहा जा सकता है। आपको बता दें कि अल सदर उन्हीं अयातुल्ला सैयद मुहम्मद सादिक के बेटे हैं जिनकी सद्दाम हुसैन ने 1999 में हत्या कर दी थी। इसी सद्दाम हुसैन को साल 2003 में फांसी दी गई थी। इसी के बाद अल सदर धीरे धीरे सुर्खियों में आने लगा।

अल सदर को पूरे इराक का समर्थन

अल सदर को शिया धर्म की रक्षा करने वाला सबसे बड़ा धर्मगुरू माना जाता है। इसलिए अल सदर को पूरे इराक के बाशिंदों का समर्थन मिला हुआ है। इराक में हिंसा फैलने का सबसे बड़ा कारण इसे ही माना जा रहा है। इराक के लोग नहीं चाहते को उनके धर्म की रक्षा करने वाला इस तरह से अपने पद का त्याग करे।

सरकार का गठन ना होना बड़ा कारण

शिया धर्मगुरु अल सदर ने अपना इस्तीफा पेश किया और इराक हिंसा की भेंट चढ़ गया। सदर के इस्तीफे के पीछे की बड़ी वजह यह है कि उनकी पार्टी को पिछले साल 2021 के अक्टूबर में हुए चुनाव में बहुमत नहीं मिला। हालांकि 73 सीटें  जीतने के साथ वे देश की सबसे पार्टी जरूर बन गए। लेकिन सरकार बनाने के लिए उनके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है। इधर उन्होंने दूसरी पार्टियों के समर्थन या गठबंधन से सरकार बनाने से साफ इनकार भी कर दिया है। इसलिए पिछले 10 महीने से इराक बगैर किसी सरकार के चल रहा है।

किसी दूसरी पार्टी के साथ सरकार पर इनकार

इराक में सरकार के गठन के लिए पिछले एक महीने से तमाम गतिविधियां चल रही हैं। यहां तक कि हालात एक बार फिर हिंसा तक पहुंच गए थे। पिछले महीने जुलाई में अल सदर के समर्थक बगदाद स्थित संसद भवन पहुंच गए थे। उन्होंने संसद पर कब्जा तक कर लिया था। तब से लेकर अब तक सरकार गठन को लेकर किसी एक राय पर नहीं पहुंचा जा सका है। इसलिए वहां यह विद्रोह अब हिंसा में तब्दील हो गया है।

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