18वीं सदी से किया जा रहा इनहेलर का उपयोग, जानिए किसने किया इसका आविष्कार
हर व्यक्ति चाहता है कि वह हमेशा स्वस्थ रहे। उसे किसी प्रकार की बीमारी न हो, लेकिन चाहे-अनचाहे हमें कई प्रकार की बीमारियां घेर लेती है। इन रोगों को दूर करने के लिए हम कई प्रकार के उपाय अपनाते हैं। जैसे- मधुमेह रोगी को रोजाना तय समय पर दवा खानी पड़ती है, ब्लडप्रेशर के रोगी को घरेलू उपाय करने की सलाह दी जाती है। उसी तरह अस्थमा के रोगी को इनहेलर दिया जाता है।
चिकित्सक की सलाह पर रोगी को नियमित रूप से इनहेलर का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। इनहेलर एक पंप की तरह होता है, जिससे मुंह के अंदर स्प्रे करने से श्वास लेने में आसानी होती है। दरअसल अस्थमा के रोगी को श्वास लेने में कठिनाई होती है। ऐसी स्थिति में मरीज को रोजाना इनहेलर से श्वास लेनी पड़ती है। ऐसे में इसे जीवनदायिनी यंत्र भी कहा जा सकता है। यदि इनहेलर न हो तो रोगी की हालत गंभीर बन सकती है।
श्वसन संबंधी रोगों में प्रभावी
इनहेलर का उपयोग श्वसन संबंधी रोगों के उपचार में किया जाता है। इसे पफर, पंप या एलर्जी स्प्रे भी कहा जाता है। यह एक चिकित्सा उपकरण है जिसका उपयोग चिकित्सक की सलाह पर किया जाता है। यह व्यक्ति के फेफड़ों तक सीधे हवा पहुंचाने का कार्य करता है। इसके माध्यम से फेफड़ों में दवाइयां भी पहुंचाई जाती है। इनहेलर कई प्रकार के होते हैं। जैसे- मीटर्ड-डोज़ इनहेलर्स, ड्राई पाउडर इनहेलर्स, सॉफ्ट मिस्ट इनहेलर्स और नेबुलाइज़र।
इन सभी उपकरणों के अलग-अलग फायदे हैं। दरअसल इसे हर व्यक्ति की अपनी क्षमता के अनुसार फेफड़ों तक दवा पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इससे रोगी को श्वास लेने में आरामदायक महसूस होता है। इसके अलावा इससे मरीज को एंटीबायोटिक दवाएं भी दी जा सकती है। इनहेलर थेरेपी दो स्थितियों में दी जाती है। अस्थमा तथा सीओपीडी यानी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज।
इनहेलर का इतिहास
इनहेलर का उपयोग 18वीं सदी से किया जा रहा है। सबसे पहले वर्ष 1778 में जॉन मडगे द्वारा इसे डिज़ाइन किया गया था। सीधे फेफड़ों तक दवा पहुंचाने का यह प्राचीन और पारंपरिक इलाज है। उस समय इसमें सुगंधित और औषधीय वाष्प का उपयोग किया जाता था। जॉन मडगे ने इसके भीतर एक लचीली ट्यूब का उपयोग किया था। जिसमें हवा खींचने के एक छेद बनाया गया था। दरअसल मडगे ने इसे खांसी के इलाज के लिए बनाया था, जिसमें अफीम का उपयोग किया गया था। इसके बाद वर्ष 1872 में वोल्फ मैकेंज़ी ने इसमें कुछ संशोधन किए। उन्होने इनहेलर्स में जिन रसायनों का इस्तेमाल किया उनमें अमोनिया, क्लोरीन, आयोडीन, टार तथा बाल्सम शामिल है।
इन रोगों में उपयोगी
इनहेलर का इस्तेमाल कई प्रकार का रोगों में किया जाता है। मुख्य रूप से अस्थमा के रोगी के लिए लाभदायक है। इसके अलावा प्रसव के दौरान प्रसूति के लिए, हड्डी के फ्रैक्चर और जोड़ों की अव्यवस्था वाले रोगियों के लिए तथा जले हुए रोगियों पर ड्रेसिंग करते समय इसका उपयोग करना सरल तथा प्रभावी माना जाता है।
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