पृथ्वी पर रेंग कर चलता है यह पानी का जीव, अस्तित्व में हैं कछुए की 327 प्रजातियां
पृथ्वी पर कई प्रकार के जीव निवास करते हैं। कुछ रेंग कर चलते हैं, तो पानी में तैरते हैं, कुछ आसमान में उड़ान भरते हैं तो कुछ जीव पेड़ों पर निवास करते हैं। धरती पर रेंगने वाले जीवों को सरीसृप श्रेणी में रखा जाता है। यह प्राणी-जगत का एक बड़ा समूह है, जो धरती पर रेंगकर चलते हैं। इनमें मेंढक, घड़ियाल, कछुआ, टुएट्रा, सांप, छिपकली तथा मगरमच्छ आदि आते हैं। कछुआ अपने शरीर को विशेष प्रकार के आवरण से ढककर रखता है। यह अत्यंत कठोर होता है। कछु आ एक जलीय तथा स्थलीय प्राणी है। विश्वभर में स्थलीय तथा जलीय कछुओ की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके इतिहास की बात करें तो कछुए की सबसे पहली जातियां आज से 15.7 करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थी।
कछुओं के बारे में
कछुए प्राणी जगत का ऐसा उदाहरण है जो रात के अंधेरे में भी आसानी से देख सकते हैं। इनकी आखों की रेटिना में असामान्य रूप से बड़ी संख्या में कोशिकाएं मौजूद होती हैं। यह सभी रंगों को देख सकते हैं। यह पराबैंगनी किरणों से लेकर लाल रंग को भी देख सकते हैं। लेकिन कछुओं की प्रजाति में तेजी से कमी देखने को मिल रही है। कछुए सरीसृपों के जीव वैज्ञानिक गण के सदस्य होते हैं। इनका शरीर पर एक कवच होता है जिससे कछुओं की पसलियां ढकी रहती है। अब तक कछुओं की कई जातियां विलुप्त हो चुकी हैं। वर्तमान में कछुए की 327 जातियां अस्तित्व में हैं। कछुए की उम्र 300 वर्ष से अधिक होती है। इनकी घटती संख्या को देखते हुए कछुआ सरंक्षण परियोजना चलाई जा रही है। भारत में इसकी एकमात्र परियोजना ओडिशा में ‘भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान’ के नाम से चलाई जा रही है। यह वर्ष 1989 में प्रारंभ हुई थी।
भारत में सरीसृप प्रजाति
भारत में बीसवीं सरीसृप प्रजाति की समृद्ध विविधता पाई जाती है। बीसवीं शताब्दी के अंत तक सरीसृपों की भारतीय उप महाद्वीप में लगभग 600 प्रजातियां थी। इनमें सांप, छिपकली, मगरमच्छ और कछुआ की कई प्रजातियां शामिल थीं। कई वैज्ञानिकों ने खोज में पाया कि पूर्वोत्तर भारत, पश्चिमी घाट, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के ऐसे क्षेत्र जिनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी थी, वहां सरीसृप की नई प्रजातियां पाई गई। सरीसृप श्रेणी के जीवों में रीढ़ की हड्डी पाई जाती है। यह ऐसे जतुओं का समूह है जिनमें आंतरिक निषेचन होता है। इनके शरीर पर बाल या पंख न होकर शल्क होते हैं। विलुप्त प्राणियों में शामिल डायनासोर और इक्थियोसौर भी सरीसृप वर्ग में आते हैं।
वर्षा से गहरा संबंध
जिन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है वहां सरीसृप वर्ग की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। इसलिए भारत के वर्षा क्षेत्रों से इनका गहरा संबध माना जाता है। पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत तथा अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में सबसे अधिक वर्षा होती है। इसलिए यहां सबसे जटिल वन प्रणाली तथा सर्वाधिक सरीसृप प्रजातियां निवास करती हैं।
(कंटेंट- सुप्रिया सरकार)