'भारत की विश्व में धमक…आर्थिक रिश्ते बेहद जरूरी' सख्ती के बाद बदल गए कनाडा के PM ट्रूडो के सुर
Justin Trudeau : नई दिल्ली। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की मौत को लेकर भारत पर गंभीर आरोप लगाने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के सुर अब बदल गए है। भारत के साथ रिश्तों में तल्खी के बीच कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो का कहना है कि भारत का दुनिया में बेहतर प्रभाव है और भारत के साथ आर्थिक रिश्ते जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि भारत एक बढ़ती आर्थिक शक्ति है, जिसकी विश्व में धमक है।
मॉन्ट्रियल में गुरुवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उन्हें लगता है कि यह बेहद महत्वपूर्ण है कि कनाडा और उसके सहयोगी विश्व मंच पर भारत के बढ़ते महत्व को समझें। भारत की प्रभावशीलता को देखते हुए उसके साथ रचनात्मक और गंभीरता से जुड़ते रहें। उन्होंने कहा कि भारत एक बढ़ती आर्थिक शक्ति और महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक खिलाड़ी है। हमने पिछले साल अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति में भी यही बताया है। हम भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने को लेकर बहुत गंभीर हैं।
ट्रूडो के इस बयान से शुरू हुआ था विवाद
दरअसल, जस्टिन ट्रूडो ने 18 सितंबर को अपने देश की संसद में खालिस्तान आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की जून में हुई हत्या को लेकर भारतीय खुफिया एजेंसियों पर सवाल उठाते हुए इसको अंजाम देने में उनका हाथ बताया था। ट्रूडो ने कहा था कि हमारी सरकार भारत की जांच एजेसियों की इस हत्या मामले में जांच कर रही है। इसके तुरंत बाद ही कनाडा सरकार ने भारत के टॉप डिप्लोमेट पवन राय को वहां से निष्कासित करने का आदेश दे दिया था।
इसके बाद भारत ने कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैके को तलब किया और वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित कर दिया था। फिर तीन दिन बाद ही भारत ने कनाडा पर सख्ती दिखाते हुए कनाडाई नागरिकों के लिए भारतीय वीजा सेवाओं को रद्द कर दिया था।
विदेश मंत्री ने किया था तीखा पलटवार
इतना ही नहीं, भारत पर लगाए गए आरोपों पर विदेश मंत्री जयशंकर ने पिछले दिनों कनाडा पर पलटवार किया था। जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि भारत ने पहले ही कनाडा को बता दिया था कि वह विशिष्ट और प्रासंगिक जानकारी देखने के लिए तैयार है। ट्रूडो के आरोपों के कारण भारत और कनाडा के बीच राजनयिक विवाद पैदा हो गया है। उ
न्होंने कहा था कि क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान तथा अंदरूनी मामलों में गैर हस्तक्षेप की कवायद चुनिंदा तरीके से नहीं की जा सकती। वे दिन बीत गए जब कुछ राष्ट्र एजेंडा तय करते थे और उम्मीद करते थे कि दूसरे भी उनकी बातें मान लें।
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