राजस्थान के सीकर जिले के छोटे से गांव में रावण को जलाया नहीं बल्कि मारा जाता है, ये प्रदेश के सबसे बड़ा और अनुठा दशहरा, जाने कहां होता है दशहरा...
जयपुर। चुनिंदा पात्रों की रामलीला और रावण दहन के दृश्य तो दशहरे पर आम है. लेकिन, राजस्थान के सीकर जिले में एक रामलीला ऐसी भी है, जिसमें पूरा गांव रामलीला का पात्र होता है. यहां रावण को भी जलाया नहीं, बल्कि मारा जाता है. जिसके लिए बकायदा गांव के लोग राम और रावण की सेना के रूप में आमने- सामने होकर घोर युद्ध करते हैं. जाने कहां भरता है दशहरा मेला...
अनुपम, अनूठा और ऐतिहासिक दशहरा
जी, हां दक्षिण भारत शैली का प्रदेश का ऐसा अनूठा महोत्सव दांतारामगढ़ तहसील के छोटे से गांव बाय में होता है. प्रथम नवरात्र से मेला व्यवस्था की शुरुआत झांकियां सजाने, कलाकारों का अभ्यास, राम रावण की सेना सहित 24 अवतारों के कलाकारों की झांकियां, दशरथ-कैकई, राजस्थान कॉमिक ड्रामा कलाकारों व राजस्थानी लोक देवता व सामाजिक प्रेरणास्पद अनेक कार्यक्रमों के लिए गांव के करीब 300 कलाकारों का अभ्यास शुरू हो जाता है. राम और रावण की सेना के बीच हुआ युद्ध दशहरे का दिग्दर्शन करवाती है, जो दो संस्कृतियों का संघर्ष के रूप में सीधा-सीधा व्यावहारिक रूप से अधर्म पर धर्म की विजय का उदाहरण इससे बढ़िया कहीं और देखने को नहीं मिलता है. यहां राजस्थान का अनुपम, अनूठा और ऐतिहासिक दशहरा मेला है जिसमें समस्त ग्रामवासी बिना किसी भेदभाव के सांप्रदायिक सौहार्द के साथ एक उत्सव के रूप में मनाते हैं.
यहां से शुरू होता है दशहरा
यह दशहरा मेला वर्तमान में 171 वीं वर्षगांठ के रूप में मनाएगा. इस उत्सव का प्रारंभ दशहरा मेला समिति बाय के तत्वावधान में 12 अक्टूबर 2024 को सुबह आराध्य देव के ध्वजारोहण के साथ बाबा लक्ष्मीनाथ की महारथी के साथ दोपहर 12:30 बजे से प्रारंभ होगा. जिसमें सर्वप्रथम हिर्णाकश्यप का चेहरा बने पात्र अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए संपूर्ण गांव में महोत्सव का न्योता देगा और दोपहर 1 बजे समस्त ग्राम वासी और क्षेत्रवासी सहित प्रवासी बंधु के सानिध्य में बाबा लक्ष्मीनाथ के आशीर्वाद से महोत्सव का उद्घाटन समारोह पूर्वक करेंगे। इसके बाद मंदिर प्रांगण में बने मंच पर दशरथ -कैकई संवाद का मंचन, राम बनवास, सूर्पनखा का नाक कान काटना, सीता हरण का मंचन होगा.
राम के राज्याभिषेक के साथ धर्म की स्थापना
इसके बाद राम रावण की सेना गांव के प्रमुख मार्ग से होते हुए राजकीय सीनियर स्कूल के पास बने मुख्य दशहरा मैदान में पहुंचकर वीरता का प्रदर्शन करती है. दूसरी ओर से भगवान श्री राम की सेना के साथ ग्राम के मुख्य मार्ग से होते हुए युद्ध स्थल पर पहुंचती है. रास्ते में ग्रामवासी रामादल पर पुष्प वर्षा कर श्री राम की जय जयकार करते हुए उनका सम्मान कर लक्ष्मीनाथ भगवान की पूजा अर्चना करते हैं. युद्ध मैदान पर प्रमुख कार्यक्रम का दिग्दर्शन होता है. जिसमें खरदूषण वध, जटायु युद्ध, मेघनाथ शक्ति प्रयोग, लंका दहन, अंगद-रावण संवाद, रावण वध, मंदोदरी विलाप आदि कार्यक्रम हजारों दर्शकों के सामने संपन्न होंगे.अंततः भगवान श्री राम के राज्याभिषेक के साथ धर्म की स्थापना व विजय जुलूस के रूप में राम अपनी सेना के साथ जिसमें गांव के लोग नाचते गाते लक्ष्मीनाथ मंदिर प्रांगण पहुंचते हैं. जहां रात्रि 8 बजे भगवान लक्ष्मी नाथ की महा आरती के साथ संपूर्ण दिन का कार्यक्रम संपन्न होता है.
24 अवतारों की झांकियां के रूप में होता है दिग्दर्शन
इसके बाद रात्रि 8 बजे से 9:30 बजे तक विश्राम होता है. जिसमें बाहर से आए यात्री वदर्शकों के लिए अनेक स्थानों पर भंडारों के रूप में खाने-पीने की निशुल्क व्यवस्था होती है. इसके बाद संपूर्ण रात्रि कालीन कार्यक्रम 9:30 बजे से शुरू होता है. जिसमें परंपरागत तरीके से सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सनातन धर्म के सभी 24 अवतारों की झांकियां के रूप में दिग्दर्शन होता है. जिसमें बावड़ी के बालाजी, गणेश जी, गरुड़ अवतार, विष्णु, सरस्वती, ब्रह्मा, सिंह वाहिनी दुर्गा, जय मां काली नरसिंह अवतार आदि अनेक झांकियों के साथ राजस्थानी कला का प्रदर्शन होता है.प्रातः सूर्योदय के साथ भगवान गरुड़ और अंत में भगवान सूर्य की झांकी के साथ महोत्सव का समापन होता है.
बाय का दशहरा महोत्सव प्रदूषण मुक्त व सांप्रदायिक सौहार्द के साथ
यह दशहरा मेला हमारे उन पूर्वजों का साक्षी है जिन्होंने सतत संघर्ष करके इस कला को निखारा है. यह केवल दशहरा मेला महोत्सव नहीं अपितु सनातन संस्कृति का अपने आप में बहुत सुंदर उदाहरण है जो की राजस्थान में कहीं देखने को नहीं मिलता. इसकी अनेक विशेषताएं भी है यहां रावण जलाया नहीं जाता बल्कि राम और रावण की सेवा का युद्ध होकर प्रत्यक्ष में जन मानस में अधर्म पर धर्म की जीत का संदेश दिया जाता है. वर्तमान युग में बटन दबाकर रावण के पुतले जलाए जाते हैं जिसे पर्यावरण प्रदूषण होता है जबकि बाय का दशहरा महोत्सव प्रदूषण मुक्त व सांप्रदायिक सौहार्द के साथ मनाया जाता है. इस गांव के प्रवासी शादी समारोह, होली दिवाली पर आने में असमर्थता व्यक्त करते हैं मगर इस दशहरा महोत्सव में आए बिना नहीं रहते और शारीरिक आर्थिक रूप से सहयोग करते हैं.