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सपना देखा... पापा को बताया और उनके सपोर्ट से बनी IAS अफसर

09:33 AM Sep 19, 2022 IST | Sunil Sharma
सपना देखा    पापा को बताया और उनके सपोर्ट से बनी ias अफसर

मध्यप्रदेश कैडर की चर्चित आईएएस अधिकारी स्वाति मीणा। इनके लिए काम ही पूजा है। अपने दबंग और तेजतर्रार स्वभाव के लिए चर्चित रही हैं। 2007 के बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुनी गई स्वाति मीणा राजस्थान के सीकर जिले की श्रीमाधोपुर तहसील के गांव बुरजा की ढाणी की रहने वाली हैं।

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यूपीएससी परीक्षा पास कर अपने माता पिता और गांव का नाम रोशन करने वाली स्वाति मीणा अपनी कार्यशैली से सबसे दबंग महिला आईएएस की श्रेणी में शामिल हो गई हैं। उनके पिता एक आरएएस अफसर हैं और मां डॉ. सरोज मीणा पेट्रोल पंप चलाती थीं।

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स्वाति के सपनों को पंख लगाए उनके पिता ने। स्वाति जब आठवीं कक्षा में थीं तब ही उनके मन में प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना पलने लगा था। इस बात को उन्होंने अपने पिता से शेयर किया तो पिता पूरी तरह उनका साथ देने में लग गए। पिता ने तब से ही उन्हें यूपीएससी की तैयारी करवानी शुरू कर दी।

मेहनत तब रंग लाई जब बेटी स्वाति 2007 के यूपीएससी एग्जाम्स में ऑल इंडिया 260 रैंक के साथ सफल हुई। स्वाति उस बैच की सबसे कम उम्र की आईएएस थीं। यूपीएससी निकालने के बाद उन्हें मध्यप्रदेश कैडर मिला। स्वाति की मां चाहती थीं कि वे डॉक्टर बनें। परंतु पापा की खुशी के लिए जिसके बाद उन्होंने आईएएस बनने की ठान ली

मध्यप्रदेश कैडर की अफसर हैं

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स्वाति की शिक्षा अजमेर से हुई। स्वाति ने अपनी पढ़ाई पूरी की और आईएएस परीक्षा के लिए तैयारी भी करती रही, पिता ने ही स्वाति को लिखित परीक्षा से लेकर इंटरव्यू तक के लिए तैयार कराया। एमपी के मंडला में स्वाति को पोस्टिंग मिली। इस दौरान कलेक्टर स्वाति मंडला ने खनन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई की।

कई विभागों से खनन माफियाओं की शिकायत मिलने के बाद उन्होंने अपनी सख्त कार्रवाई से खनन माफियाओंको सबक सिखाया। स्वाति के पति तेजस्वी नायक भी आईएएस ऑफिसर हैं,वे कर्नाटक के रहने वाले हैं। एमपी के सीधी में तैनाती के दौरान उनकी मुलाकात तेजस्वी से हुई जो कटनी में पोस्टेड थे। बाद में दोनों ने शादी का फै सला किया।

ड्यूटी फर्स्ट है स्वाति के लिए

मध्य प्रदेश के खंडवा मेंडीएम के पद पर तैनाती के दौरान स्वाति को नो नॉनसेंस एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में पहचान मिली। उस समय स्वाति ने नर्मदा के रेत और खनन माफियाओ पर प्रतिबंध लगाकर खूब सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने किसी भी कीमत पर अपनी ड्यूटी और पद की प्रतिष्ठा से समझौता नहीं किया। वे पहली ऐसी अफसर बनी जो वे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाकर लोगों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनती और दूर करती।

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