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लड़कियों की छाती मापने के तरीके पर हाईकोर्ट ने उठाए सवाल, दूसरा तरीका तलाशने की दी सलाह

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि लड़कियों की छाती मापने वाला नियम संविधान के तहत प्रदत्त गरिमा और निजता के अधिकार को ठेस पहुंचाता है।
12:35 PM Aug 17, 2023 IST | Anil Prajapat
Rajasthan High Court

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने भर्ती प्रक्रियाओं में शारीरिक परीक्षण के दौरान महिला उम्मीदवारों में फेफड़ों की क्षमता के आकलन के लिए छाती के माप के मानदंड की निंदा करते हुए कहा है कि यह पूरी तरह से मनमाना और अपमानजनक है। साथ ही लड़कियों की फेफड़ों की क्षमता जांचने के लिए दूसरा तरीका तलाशने की सलाह दी है।

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि लड़कियों की छाती मापने वाला नियम संविधान के तहत प्रदत्त गरिमा और निजता के अधिकार को ठेस पहुंचाता है। अदालत ने राज्य के अधिकारियों को फेफड़ों की क्षमता का आकलन करने के वास्ते किसी वैकल्पिक तरीके की संभावना तलाशने के लिए विशेषज्ञों की राय लेने का भी निर्देश दिया।

जस्टिस दिनेश मेहता ने वन रक्षक पद के लिए शारीरिक दक्षता परीक्षा उत्तीर्ण करने के बावजूद छाती माप के मानदंड पर उनकी अयोग्यता को चुनौती देने वाली तीन महिला उम्मीदवारों की याचिका पर फैसला करते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने भर्ती प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन कहा कि महिला अभ्यर्थियों के लिए छाती माप की आवश्यकता के बारे में कुछ विचार-विमर्श आवश्यक है, चाहे वह वन रक्षक का पद हो या वनपाल या कोई अन्य पद।

न्यायाधीश ने 10 अगस्त के अपने आदेश में कहा कि महिला उम्मीदवार के मामले में छाती का आकार उसकी शारीरिक योग्यता या फेफड़ों की क्षमता का निर्धारक नहीं होना चाहिए। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस तरह के मानदंड निर्धारित करना किसी महिला की गरिमा, शारीरिक स्वायत्तता और मानसिक अखंडता को प्रभावित करता है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत प्रदत्त, महिला की गरिमा और निजता के अधिकार पर स्पष्ट आघात है। साथ ही, कोर्ट ने एम्स से माप संबंधी रिपोर्ट आने पर याचिका खारिज कर दी।

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