जिफ: सोनाली बेंद्रे ने बताए इंडस्ट्री में आने के चैलेंज, बोलीं-' फिल्में नहीं चलने के पीछे बुनियादी गलती है जिम्मेदार'
जयपुर। जिस समय मैंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था, उस वक्त चुनौतियां ज्यादा थीं। आज फीमेल हर फील्ड में अपना बेस्ट दे रही हैं। यह कहना था बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे का, जो फिल्म मेकिंग में फीमेल मेकर के सामने आने वाली चुनौतियों पर बात कर रही थीं। उन्होंने कहा कि फिल्म मेकिंग में जोया अख्तर, मीरा नैय्यर जैसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने इंडस्ट्री में मुकाम बनाया है।
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उनके साथ ही आईनोक्स में चल रहे 5 दिवसीय जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्ट2023 के दूसरे दिन कई निर्माता- निर्देशकों ने विचार रखे। वहीं, फिल्मों की स्क्रीनिंग की गई। दूसरे दिन फिल्म अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे, फिल्म स्क्रिप्ट राइटर कमलेश पांडे, पंकज पाराशर, विनय वायकुल, यूनाइटेड किंगडम की फिलिपा फ्रिस बी, बांगलादेश के प्रसून रहमान, इंडियन फिल्म डायरेक्टर आरती बागड़ी, जी-5 की चीफ कन्ट्रोलर निमिशा पाण्डेय और मेक्सिकन फिल्म डायरेक्टर जुआन आर्के ने शिरकत की।
सिनेमा कल, आज और कल पर हुई चर्चा
पहले सत्र में सिनेमा कल, आज और कल पर लेखक विनोद भारद्वाज ने चर्चा की। वहीं, पंकज पाराशर ने कहा कि लोग कहते हैं सिनेमा खत्म होने वाला है। यह गलत है। हां ये बात सही है कि सिनेमा में बदलाव का दौर चलता रहा है और चलता रहेगा। पहले पायरेसी आई तो लोगों ने कहा कि सिनेमा खत्म, कोविड आया तो लोग बोले सिनेमा खतरे में है, फिर ओटीटी की शुरुआत हुई तब भी यही शंका रही, लेकिन सिनेमा चलता रहा और आगे भी चलता रहेगा।
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डॉक्यूमेंट्री की लॉन्चिंग
राजस्थान के चूरू जिले के बिसाउ कस्बे में पिछले 167 साल से खेली जा रही मूक रामलीला पर फिल्मकार रजनी आचार्य की बनाई डॉक्यूमेंट्री की लॉन्चिंग की गई। यह अनूठी रामलीला खुली सड़क पर नवरात्रों में खेली जाती है, जहां 2 सौ मीटर की सड़क पर मिट्टी बिछा दी जाती है। सड़क के एक ओर भगवान श्रीराम तथा दूसरी ओर राक्षस रहते हैं। इस मौके पर रामलीला के पात्र वेशभूषा पहनकर दर्शकों के बीच आए।
हजार में से 5 होती हैं कामयाब
स्क्रिप्ट राइटर कमेलेश पांडे ने कहा कि बॉलीवुड में साल में 1 हजार फिल्म बनती हैं, लेकिन 4-5 ही कामयाब होती हैं। इसके लिए बुनियादी गलती जिम्दारी है। उनमें होंने कहा, कि 1 हजार पौधों की बगिया में चारपांच में ही फूल खिलें अथवा फल आएं तो इसके लिए माली ही जिम्दार में माना जाएगा। फिल्म उद्योग में जो लोग सक्रिय हैं उनमें से अधिकांश ऐसे ‘स्कूल ड्रॉप आउट’ हैं, जिन्हें हमारी जड़ों का ज्ञान नहीं है। इसलिए बॉलीवुड को अब जड़ों और पब्लिक सेंटीमेंट को पहचानना होगा नहीं।
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भगत सिंह और गांधी कल भी पसंद थे और रहेंगे
गजनी फिल्म के सह लेखक रह चुके विनय वायक्कुल ने कहा कि भगत सिंह और गांधी जैसी कहानियों को कल भी पसंद किया जाता था, आज भी किया जाता है और कल भी किया जाता रहेगा। सिनेमा की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसमें हमारी सोसायटी का रिफलेक्शन नहीं आता है और जब तक यह नहीं गा सिनेमा सफल नहीं हो सकता। हमारी सोच का रिफलेक्शन सिनेमा में जरूरी है। इसके अलावा अच्छी कहानी को यदि अच्छे कलाकार मिल जाएं तो फिल्म निश्चित सफल होती है।