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Flashback 2024: राजस्थान हाईकोर्ट के 10 ऐतिहासिक फैसले जिनके लिए याद किया जायेगा यह साल

02:34 PM Dec 25, 2024 IST | Digital Desk

वर्ष 2024 राजस्थान हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसलो के लिए याद किया जाएगा..इस वर्ष में राजस्थान हाईकोर्ट के जजों ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए है जिसमें दसकों से चलते कई मिथको को भी तोड़ा है. चलिए जानते है राजस्थान हाईकोर्ट के 10 फैसलों के बारे में -

1.भंगी, नीच नहीं है जातिसूचक शब्द

राजस्थान हाईकोर्ट ने 14 नवंबर के अपने ऐतिहासिक फैसले में एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज एक मुकदमे में कुछ शब्दों को 'जातिसूचक' की श्रेणी से हटा दिया है. जस्टिस बिरेन्द्र कुमार की एकलपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भंगी, नीच, भिखारी, मंगनी जैसे शब्द जातिसूचक नहीं है. यह पूरा मामला अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान विभाग के कार्मिकों से बहस से जुड़ा है, जिसके बाद मामला कोर्ट पहुंच गया. जस्टिस बीरेन्द्र कमार की बैंच ने सुनवाई करते हुए इन शब्दों का इस्तेमाल करने वाले 4 आरोपियों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट की धाराओं को हटा दिया है.

2.दो से ज्यादा संतान वाले कर्मचारियों की पदोन्नति पर रोक और फिर संशोधन

राजस्थान हाईकोर्ट ने 30 अगस्त 2024 के अपने फैसले में कार्मिक विभाग के 16 मार्च, 2023 की अधिसूचना के आधार पर दो से ज्यादा संतान वाले कर्मचारियों को संबंधित सालों से पदोन्नत करने पर अंतरिम रोक लगाने के आदेश दिए. जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की खंडपीठ ने यह आदेश बारां व झालावाड़ के पुलिसकर्मी संतोष कुमार व जयदीप की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए. खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि किसी भी कर्मचारी की योग्यता को उसकी सेवा के पिछले सालों से कैसे तय किया जा सकता है?. हाईकोर्ट के इस अंतरिम आदेश से 125 सरकारी विभागों के कर्मचारी प्रभावित हुए थे.

3 मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने किया संशोधन

25 नवंबर 2024 को राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एम एम श्रीवास्तव और जस्टिस उमाशंकर व्यास की खंडपीठ ने हाईकोर्ट की दूसरी खंडपीठ के आदेश पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने कार्मिक विभाग के 16 मार्च, 2023 की अधिसूचना के आधार पर दो से ज्यादा संतान वाले कर्मचारियों को संबंधित सालों से पदोन्नत करने के मामले में रोक लगाने के आदेश को संशोधित कर दिया.. इसके साथ ही अदालत ने पदोन्नति पर लगी रोक को हटाते हुए होने वाली पदोन्नतियों को याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रखा है. मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने यह आदेश संतोष व अन्य की याचिका पर राज्य सरकार की ओर से दायर स्टे प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए दिए

4.RAS अधिकारियों का IAS में प्रमोशन

राजस्थान हाईकोर्ट ने 5 दिसंबर 2024 को एक अहम फैसले में राजस्थान में पिछले तीन सालों से अटके र RAS अधिकारियों का IAS में प्रमोशन का रास्ता साफ कर दिया. जस्टिस पंकज भण्डारी की खंडपीठ ने 5 दिसंबर को आरएएस एसोसिएशन की उस याचिका को खारिज कर दिया है. जिससे गैर आरएएस सर्विस से IAS में प्रमोशन पर रोक लगी थी. प्रमोशन की रोक हटाने के साथ ही हाईकोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए राजस्थान एसोसिएशन पर 5 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है. इस फैसले के बाद सरकार प्रमोशन के 15 प्रतिशत पदों पर नॉन आरएएस अधिकारियों का आईएएस में प्रमोशन कर सकती है.

5.नर्सिंग कॉलेज की स्थापना की शर्त

राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस पुष्पेन्द्रसिंह भाटी और जस्टिस मुनिरी लक्ष्मण ने 1 मार्च 2024 के अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि राज्य सरकार किसी नर्सिंग कॉलेज की स्थापना के लिए कॉलेजों में सीटों की वृद्धि के लिए एनओसी प्राप्त करने के लिए 100 बिस्तरों वाले अपने अस्पताल की शर्त लगा नहीं सकती है..राजस्थान सरकार की अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि शर्त लगाने वाली नीति केंद्रीय सरकार की है. और राज्य द्वारा ऐसा करना अधिनियमित 2020 के विनियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। राज्य सूची I की प्रविष्टि 66 के तहत यूओआई द्वारा निर्धारित मानकों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं कर सकता। एकल न्यायाधीश ने मामले के सभी प्रासंगिक पहलुओं और क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले पूर्ववर्ती कानूनों पर विचार किया। अपील खारिज कर दी गई।

6.सार्वजनिक रोजगार में योग्य उम्मीदवारों का चयन करना जरूरी

राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने 4 मार्च 2024 को प्रदेश के सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक फैसले में कहा कि सार्वजनिक रोजगार में योग्य उम्मीदवारों का चयन करना आवश्यक है. जस्टिस पी एस भाटी और जस्टिस राजेन्द्र सोनी की पीठ ने स्टेनोग्राफर ग्रेड-III परीक्षा में उत्तीर्ण परिणाम में गलतियों की सीमा 5% से बढ़ाकर 15% करने के फैसले का समर्थन किया. हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि सार्वजनिक रोजगार में, योग्य उम्मीदवारों का चयन करना आवश्यक है और उचित सूत्र लागू करके उच्च अंक वाले उम्मीदवारों का चयन करना भी आवश्यक है. इसके साथ ही राजस्थान हाईकोर्ट ने कमलकुमार सहित सैकड़ो अभ्यर्थियो की याचिकाओं को खारित कर दिया था.

7.किसान की भूमि से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला

राजस्थान हाईकोर्ट ने 7 मार्च 2024 के अपने फैसले में किसान की जमीन के मामले में ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि कृषि योग्य भूमि के बदले में पथरीली और बंजर भूमि आवंटित करना उचित नही हैं. जस्टिस विनीकुमार माथुर ने इस फैसले में जैसलमेर जिला कलेक्टर के आदेश को भी खारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता किसान ने पिछले 50 वर्षों में अपनी कड़ी मेहनत, लगन और प्रतिबद्धता से बंजार और गैर-कृषि भूमि को कृषि योग्य भूमि बनाया है, कृषि योग्य भूमि के बदले में आवंटित भूमि पथरिली है औ कृषि गतिविधियों के लिए उपयुक्त नहीं है. इस तरह का जिला कलेक्टर का आदेश राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत निहित उद्देश्य को विफल कर देगा.

8.निकाहनामा को लेकर ऐतिहासिक फैसला

राजस्थान हाईकोर्ट ने 30 नवंबर 2024 को दिए अपने फैसले में स्पष्ट किया कि निकाहनामा को विवाह के तथ्य की मौखिक दलील की पुष्टि में सबूत के रूप में लिया जा सकता है,.मुस्लिम रीति के अनुसार होने वाली शादी में उर्दू भाषा में जारी निकाहनामा को समझने में आसान बनाने के लिए उसे द्विभाषी यानी हिन्दी अथवा अंग्रेजी में जारी करना जरूरी हैं. जस्टिस फरजंद अली की एकलपीठ ने अपने फैसले में राज्य सरकार को कई महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी करते हुए मुस्लिम काजी और मौलवियों के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किए…हाईकोर्ट ने जिला कलेक्टर के कार्यालय मे निकाह संपन्न करने के लिए अधिकृत काजियों की सूची दर्ज करने के निर्देश दिये साथ ही अल्पसंख्यक विभाग को भी हाईकोर्ट ने निर्देश जारी किए.

9.नेगेटिव पुलिस रिपोर्ट नागरिकों के पासपोर्ट बनाने में बाध्य नहीं

राजस्थान हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर 2024 को दिए अपने अहम फैसले में कहा कि किसी भी नागरिक को पासपोर्ट से वंचित नहीं किया जा सकता. भले ही व्यक्ति की पुलिस जांच रिपोर्ट निगेटिव क्यों न आ जाए. क्योंकि पासपोर्ट बनवाना देश के हर नागरिक का कानूनी अधिकार है और कोई भी उसे इससे वंचित नहीं कर सकता. जस्टिस अनूप कुमार ढांड की बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि पासपोर्ट अथॉरिटी पुलिस रिपोर्ट से बंधी नहीं है. पासपोर्ट एक्ट 1967 पासपोर्ट अथॉरिटी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसमें विवेकाधिकार दिया गया है जिसमें वेरिफिकेशन रिपोर्ट के बावजूद निष्पक्ष फैसला लेने का अधिकार शामिल है. इसके तहत किसी भी नागरिक को पासपोर्ट पाने के उसके कानूनी अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

10.राजद्रोह कानून राजनीतिक असहमति के खिलाफ तलवार नहीं हो सकता

राजस्थान हाईकोर्ट ने 16 दिसंबर 2024 को गंगानगर के एक सिख नेता तेजेन्द्रपालसिंह की याचिका पर उनके खिलाफ राजद्रोह की धाराओं में दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया है. जस्टिस अरूण मोगा की अदालत ने बीएन की धारा 152 को लेकर स्पष्ट किया कि देश में राजद्रोह कानून राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ढाल की तरह है और राजद्रोह कानून राजनीतिक असहमति के खिलाफ तलवार नहीं हो सकता. हाईकोर्ट ने कहा कि यह धारा देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले किसी भी कार्य को अपराध मानती है लेकिन केवल दुर्भावनापूर्ण इरादे से जानबूझकर की गई कार्रवाई ही इसके दायरे में आती है.. इस धारा का उपयोग वैध असहमति को नियं‌त्रित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए..बीएनएस की 197 धारा के प्रावधान को लेकर भी राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि जो अभिव्यक्ति आलोचनात्मक है लेकिन किसी हिंसा या घृणा को नहीं भड़काती, ऐसी अभिव्यक्ति इस धारा के प्रावधान के दायरे में नहीं आती है. गौरतलब है कि तेजेन्द्रपालसिंह पर आरोप था कि उन्होने खालिस्तानी समर्थक नेता अमृतपाल सिंह के लिए समर्थन में फेसबुक पर एक वीडियो अपलोड किया था. जो कि देश की सुरक्षा के लिए खतरा है.

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