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करप्शन के मुद्दे पर प्रदेश में जारी सियासत के बीच चौंकाने वाले आंकड़े आए सामने

प्रदेश में करप्शन पर कार्रवाई को भले ही भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने रिकाॅर्ड बना दिए हों, लेकिन सरकार का अफसरों की काली कमाई को अभयदान मिल रहा है।
06:49 AM May 17, 2023 IST | Anil Prajapat
करप्शन के मुद्दे पर प्रदेश में जारी सियासत के बीच चौंकाने वाले आंकड़े आए सामने

(पंकज सोनी) :  जयपुर। प्रदेश में करप्शन पर कार्रवाई को भले ही भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने रिकाॅर्ड बना दिए हों, लेकिन सरकार का अफसरों की काली कमाई को अभयदान मिल रहा है। करप्शन के मुद्दे पर प्रदेश में जारी सियासत के बीच बेहद चौंकाने वाले आंकड़े ये हैं कि हर साल एसीबी करीब पांच सौ से ज्यादा भ्रष्ट अफसर और कर्मचारियों को गिरफ्त में लेती है, लेकिन इनके खिलाफ केवल चालान पेश करने तक ही यह कार्रवाई सीमित रहती है, जबकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 18-ए में भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति कुर्क करके उसका उपयोग जनहित में करने का प्रावधान है। प्रदेश में इसी कानून की पालना में राजस्थान विशेष न्यायालय विधेयक-2012 में कांग्रेस की दूसरी अशोक गहलोत सरकार में पारित किया गया था, लेकिन इस कानून के तहत आज तक एक भी भ्रष्टाचारी की संपत्ति को कुर्क नहीं किया गया।

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इस कानून में यह भी प्रावधान किया गया था कि भ्रष्टाचार के मामलों का कोर्ट से एक साल में फैसला कराया जाएगा। साथ ही कुर्क की गई संपत्ति को अब राजकीय संपत्ति घोषित करके सरकारी विभागों और कार्यालयों को उपलब्ध कराया जाएगा। नए विधेयक में प्रावधान किया गया था कि भ्रष्ट आचरण से जुटाई गई आय से अधिक संपत्ति को कुर्क या जब्त किया जा सकता है। तब तक भ्रष्टाचार निवारण कानून में यह प्रावधान नहीं था। भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान उत्तरप्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में है। वहां कुर्की की कार्रवाई भी की जा रही है, लेकिन राजस्थान में कुर्की की प्रक्रिया के जटिल और लंबी होने के कारण एसीबी इस तरफ कदम नहीं बढ़ाती। संपत्ति कुर्क करवाने के लिए एसीबी को अलग से चालान पेश कर कोर्ट से स्वीकृति लेनी होती है।

Anti Corruption Bureau : चार साल में 1776 अभियोग

एसीबी ने चार साल में 1776 अभियोग दर्ज किए। इनमें से 929 मामलों में न्यायालय में चालान प्रस्तुत किए गए। इसमें से 99 प्रकरण तो आय से अधिक संपत्ति के थे, लेकिन भ्रष्टाचारी कुछ अर्से तक न्यायिक अभिरक्षा में रहने के बाद पद पर बहाल हो जाते हैं। एसीबी काली कमाई का पता तो कर लेती है, लेकिन इसके आगे के वल भ्रष्टाचार को लेकर ही चालान पेश किया जाता है। संपत्ति को कुर्क करने के लिए दूसरा चालान न्यायालय में नहीं पेश किया जाता। एसीबी से जुड़े मामलों में अभियोजन स्वीकृति को लेकर सरकार ने हाल ही में एसओपी जारी की है। विगत चार सालों में भ्रष्टाचार और गबन के 636 अभियुक्तों के अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रस्ताव सरकार के पास लंबित है। जबकि एसीबी के जारी एसओपी में सक्षम प्राधिकारी को अधिकतम चार माह की अवधि में अभियोजन स्वीकृति जारी करने के निर्देश है। चार सालों अभियोजन स्वीकृति के लिए भेजे गए 2475 अभियोजन स्वीकृति के प्रस्तावों में से 1645 अभियुक्तों के विरुध अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गई। अभियोजन स्वीकृति में देरी कारण भ्रष्ट अधिकारी या तो बहाल हो जाते हैं या फिर उनके खिलाफ मामले कमजोर हो जाते हैं।

इस प्रक्रिया से बचती है ACB 

वरिष्ठ अधिवक्ता एके जैन ने कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति को कुर्क करने का प्रावधान कानून में है, लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि एसीबी इस प्रक्रिया से बचती है। भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति कुर्क की जाए तो भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत कार्रवाई मानी जाएगी।

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