राइट टू हेल्थ बिल का विरोध: निजी अस्पतालों में चिरंजीवी बीमा सहित सभी सरकारी योजनाओं का किया बहिष्कार
जयपुर। राज्य सरकार की ओर से प्रस्तावित राइट टू हेल्थ बिल का विरोध पूरे राज्य में तेज हो गया है। राजस्थान में प्रस्तावित बिल के विरोध में डॉक्टरों ने सड़कों पर उतरकर हड़ताल की घोषणा की। प्रदेश में शनिवार सुबह 8 बजे से 24 घंटे के लिए चिकित्सा और आपातकालीन संचालन बंद रहेगा। सोशल मीडिया पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने शनिवार को ट्वीट कर कहा कि उन्होंने बिल में कुछ संशोधन की मांग की है, आईएमए सदस्यों के साथ खड़ा है।
इधर, जॉइंट एक्शन कमेटी ने बड़ा निर्णय लेते हुए प्रदेश के सभी निजी अस्पतालों में सभी सरकारी योजनाओं के बहिष्कार किया। सरकार की प्रवर समिति की बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया। पीएचएनएस के सचिव डॉ. विजय कपूर ने कहा कि सरकार की मंशा राइट टू हेल्थ बिल को लाने की है। हमसे सिर्फ सुझाव मांगे जा रहें है। ऐसे में हम इस बिल को किसी सूरत में बर्दास्त नहीं करेंगे। जब तक इस बिल को वापस नहीं लिया जाता है, तब तक हम निजी अस्पतालों में सरकार की सभी योजनाओं का बहिष्कार करेंगे। सरकार की मुख्यमंत्री चिरंजीवी बीमा योजना, आरजीएचएस व अन्य सभी योजनाओं का निजी अस्पतालों में अब लाभ नहीं दिया जाएगा।
इससे पहले शनिवार सुबह जेएमए में बिल के विरोध में सभी डॉक्टर्स एकत्रित हुए। जहां से डॉक्टर्स ने सरकार के खिलाफ रैली निकाली। यह रैली एसएमएस मेडिकल कॉलेज से त्रिमूर्ति सर्किल तक निकाली गई।
प्रदेशभर में बंद निजी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज…
राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में शनिवार को प्रदेशभर में निजी अस्पताल बंद है। साथ ही सभी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज, सभी डायग्नोसिस सेंटर व मेडिकल सेंटर बंद है। बंद को अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ, मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन व फार्मासिस्ट एसोसिएशन की तरफ से समर्थन दिया गया है।
बिल में जताई यह आपत्तियां…
जब संविधान में पहले ही स्वास्थ्य का अधिकार दिया गया है, तो किसी भी नए बिल की आवश्यकता ही क्या है।
हेल्थ के मायने मात्र बीमारी का इलाज नहीं, बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वास्थ्य के मायने बहुत विस्तृत हैं, जिसमें सामाजिक ,आर्थिक,भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ होना है। तो सरकार पहले स्वच्छ हवा, पानी, बिना मिलावट के खाद्य पदार्थ, रोजगार उपलब्ध करवाए, वरना यह बिल केवल आम जन को गुमराह करने का एक तरीका भर है।
सभी निजी अस्पतालों को आपातकालीन अवस्था में आये मरीज़ का इलाज निशुल्क करना होगा। चाहे आपातकाल की सुविधा उस चिकित्सालय में हो या न हो, यह आपातकालीन (इमरजेंसी) की बिल में कोई व्याख्या, परिभाषा नहीं।
राज्य के सभी नागरिकों को सभी सरकारी- गैर सरकारी चिकित्सा संस्थानों में निशुल्क जांच और इलाज का अधिकार देना सिर्फ एक चुनावी शिगूफा है। पहले ही 50 से ज्यादा राष्ट्रीय कार्यक्रम और चिरंजीवी बीमा जैसी योजनाएं सही प्लानिंग के अभाव में आमजन को कोई लाभ नहीं दे रहीं, उस पर इस बिल के प्रावधान चिकित्सकीय काम को कानूनी शिकंजे में कसकर जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ की योजना भर है।
जिला और राज्य स्तरीय कमेटी में जन प्रतिनिधियों के हाथों प्रताड़ना की प्रबल सम्भावना है।नइससे इंस्पेक्टर राज ही बढ़ेगा और इलाज करने के बजाय चिकित्सक को अपनी सुरक्षा की फिक्र अधिक रहेगी।
जिला और राज्य स्तरीय कमेटी की ओर से किए गए निर्णय के खिलाफ देश की किसी भी अदालत में अपील का अधिकार नहीं, तो क्या चिकित्सकों को न्याय पाने का अधिकार भी नहीं है क्या?
भविष्य में सभी चिकित्सा संस्थानों की सेवाओं की गुणवत्ता की ऑडिट का प्रावधान है। क्या ऐसे प्रावधान लगाकर किसी अन्य सेवा जैसे- शिक्षा, बिजली ,पानी पर भी इसी प्रकार की ऑडिट की जाती है ? हर चिकित्सक हर मरीज के लिए अपनी श्रेष्ठ सेवाएं देता है, लेकिन स्वास्थ्य के नाम पर जनता की भावनाओं को भड़काने वाले ऐसे प्रावधान चिकित्सकों को कतई स्वीकार नहीं है।
बिल में निजी चिकित्सा संस्थानों की सेवाओं का मूल्य निर्धारित किए जाने का प्रावधान, जो कि अकल्पनीय रूप से इतने कम आंके जाते हैं कि एक निजी चिकित्सा संस्थान को चलाना ही मुश्किल होगा।
सरकार राइट टू हेल्थ बिल के माध्यम से एक ओर निजी अस्पतालों का पूरी तरह सरकारीकरण करना चाहती है, तो दूसरी ओर सभी चिकित्सकों- चाहे सरकारी हों या निजी, उन्हें बेवजह कानूनी शिकंजे में फंसा कर उनके नैसर्गिक और संवैधानिक अधिकारों का हनन करने की तैयारी कर रही है।