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Diwali 2023 : आधुनिकता की दौड़ में भूले परंपरा…चमचमाती लाइटों की रोशनी में खो रही मिट्टी के ‘दीपकों की लो’

Diwali 2023 : मिट्टी के दीयों और मटकियों सहित अन्य उत्पादों की जमकर बिक्री होती थी, लेकिन अब समय बदल गया है।
07:41 AM Nov 12, 2023 IST | Anil Prajapat
diwali 2023   आधुनिकता की दौड़ में भूले परंपरा…चमचमाती लाइटों की रोशनी में खो रही मिट्टी के ‘दीपकों की लो’

Diwali 2023 : जयपुर। दीपावली पर्व का आगमन मिट्टी के कामगारों के लिए महाबिक्री सीजन होता था। मिट्टी के दीयों और मटकियों सहित अन्य उत्पादों की जमकर बिक्री होती थी, लेकिन अब समय बदल गया है। रंग-बिरंगी चम-चम करती लाइट्स की रोशनी में दीयों की लौ की चमक मंद पड़ गई है। हर शॉप, हर मॉल सज-धज कर ग्राहकों के स्वागत को तैयार है, ऐसे में इन मिट्टी के फनकारों के ग्राहक और बिक्री में गिरावट आई है, जो लगातार बढ़ती जा रही है।… शहरों की आंखों पर पड़ी झलक को गांव और ढाणी तक ले आया है आदमी।

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मिट्टी के उत्पादों के व्यवसाय से जुड़े देवेंद्र कुमार ने बताया कि जहां तक मुझे याद है कि पिछली दिवाली जो व्यक्ति इस फोटो में दिख रहें हैं वे मेरी चौखट पर नहीं आए थे न बस्ती में। मैंने गत वर्ष न आने का कारण पूछा तो कहते हैं कि इण त्योहार माथे तिंवारी (बाजरी या रुपए जो भी) में बस्ती वाले बहुत किच किच करते हैं। गांव से गाड़ी में आऊं, ढाणी- ढाणी जाऊं पालो फिरूं, पड़तो नी खावे और दिया भी 9/11/15 और एक लक्ष्मी जी की पूजा के लए बड़ा दीपक…आप एक दिए की कीमत 5 रुपए भी लगवाते हैं तो 15 दीयों का 75 रुपए होता है। हम बाजरी कितनी डालते हैं 1 किलो या अधिकाधिक 2 किलो और तो और ऊपर से खरी खोटी और सुना देते हैं कि ‘इत्ति तो घणी, थारो की लागे’। मैं उन्हें कहना चाहता हूं कि बाबूजी बहुत कुछ लगता है। मेहनत हैं। आशा है। भावना जुड़ी है आपसे। आपकी बस्ती से…। उम्मीद अथवा भावना से बड़ी यदि कोई कीमत हो तो फिर अपने घर के दरवाजे का पल्लू इनके आते धकेल देना ही बेहतर है, क्योंकि हमने इनकी जीविकोपार्जन के अनेक थोथे कारण ढूंढ लिए होंगे।

आधुनिकता की दौड़ में भूले परंपरा

उन्होंने कहा कि हमें उत्सव दिख रहा है। घर में पड़ी लाइट्स से जुड़ने वाली झालर दिख रही हैं। घर को चमकाना इन दीयों से नामुमकिन लगता है। वो चमकने वाली 500 रुपए की डेकोरेशन से घर को खुशियों से सरोबार करना चाहते हो। हर व्यक्ति सोचता है कि पेट पर लात मारकर न खाना, न कमाना! फिर ये सोच कहां चली जाती होगी, जब हम इन कामगारों की दुकान से माटी से निर्मित वस्तुओं के भाव में इस कद्र पेश आते हैं कि कहीं मिट्टी से निर्मित वस्तुओं का शोरूम ही खड़ा न कर दे। साथ ही सरकार की मिट्टी के बर्तनों को इस्तेमाल कर पर्यावरण संतुलन की सीख भी फीकी पड़ रही हैं।

इस दिवाली आशा का दीप जलाएं

देवेंद्र कुमार ने अपील की कि विपणन प्रत्येक चीज का हो। बाजार में हर वस्तु का क्रय-विक्रय हो, जिससे कि ग्रोथ रेट बढ़े। किंतु ये अपनी हस्तकला को अपने घर तक छोड़ने आते हैं। हमें खुशी से इन्हें खुश करके लौटाना ही चाहिए। इनके हाथ निराशा लगती है तो इनकी कलाएं विलुप्त की और ही बढ़ेगी। हमें रीति को संजोना हैं साथ ही इन कामगारों का ख्याल भी,आइए इस दिवाली आशा का दीप जलाएं।

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