वन कर्मियों की हड़ताल का इफेक्ट! जयपुर में मासूम की मौत के बाद अब कोटा में बारहसिंगा ने गंवाई जान
प्रदेश में वन कर्मियों की हड़ताल पिछले 6 दिन से जारी है। प्रदेशभर के लगभग 500 वन कर्मचारी अपनी 15 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल पर बैठे हैं। कई बायोलॉजिकल पार्क में तो ताले भी लग गए हैं लेकिन अब यह हड़ताल आम लोगों और जानवरों की जान को लेकर महंगी साबित हो रही है। दरअसल बीती रात जयपुर के जमवारामगढ़ में लेपर्ड के अटैक से एक डेढ़ साल के मासूम की मौत हो गई थी तो अब कोटा में बारहसिंगा की मौत हो गई है। यह बारहसिंगा वन से बाहर निकल कर सड़क पर आ गया था यहां क वाहन की चपेट में आने स इसकी मौत हो गई थी।
सही समय पर इलाज मिलता को बच सकती थी जान
मामला कोटा के नयापुरा क्षेत्र का है। यहां स्थित सैन्य परिसर में बड़ी संख्या में रहने वाले वन्य जीवों में से बारहसिंघा भटकता हुआ स्टेशन से घंटाघर की ओर जाने वाले रास्ते पर आ गया, जहां तड़के किसी अज्ञात वाहन की चपेट में आने से वह गंभीर रूप से घायल हो गया।
बताया गया है कि काफी देर तक यह बारहसिंघा घायल अवस्था में सड़क पर ही पड़ा तड़पता रहा, लेकिन किसी ने उसकी सुध नहीं ली। सुबह करीब 8 बजे नयापुरा थाना पुलिस को जब बारहसिंघा के घायल पड़े होने की सूचना मिली तो पुलिस की एक टोली मौके पर पहुंची। उस समय तक वह बारहसिंघा जीवित था। पुलिसकर्मी घायल बारहसिंघा को घटनास्थल के पास ही स्थित पुराने चिड़ियाघर लेकर गए, लेकिन वहां पशु चिकित्सकों ने जांच के बाद उसे मृत घोषित कर दिया।
जयपुर में लेपर्ड ने डेढ़ साल के मासूम पर किया था हमला, मौत
इस मामले में सांगोद विधायक भरत सिंह ने बारहसिंघा की मौत पर संवेदना जताई है। उन्होंने कहा कि यह घटना वन कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से हुई है, क्योंकि राज्य सरकार वन कर्मचारियों की मांगों को मानने को तैयार नहीं है। जिस कारण वन कर्मचारी अभी तक हड़ताल पर बने हुए हैं। जयपुर में जमवारामगढ़ में भी देर रात डेढ़ साल के मासूम पर लेपर्ड ने हमला कर दिया था जिसके बाद उसकी दर्दनाक मौत हो गई थी।
विधायक भरत सिंह ने सरकार को भेजा पत्र
इस मामले को लेकर विधायक भरत सिंह ने आज राज्य के वन मंत्री हेमाराम चौधरी को भेजे पत्र में कहा कि उन्होंने एक फरवरी को मुख्यमंत्री और राज्य व वाइल्डलाइफ बोर्ड के अध्यक्ष अशोक गहलोत को एक पत्र भेजकर यह अनुरोध किया था कि प्रदेश के वन कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर आंदोलित हैं। राज्य सरकार को उनकी जायज मांगों को बातचीत के जरिए मान लेना चाहिए। आंदोलन को समाप्त करवाना चाहिए क्योंकि आज की मौजूदा स्थिति में वन और वन्य जीवों को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना वन कर्मचारी ही करते हैं, इसलिए उनकी सभी जायज मांगें स्वीकार कर उनका आंदोलन समाप्त करवाना चाहिए।
प्रदेशभर के वनकर्मी 19 सितंबर, 2022 से अपनी 15 सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।
ये हैं उनकी मांगें
1. वनकर्मी पुलिस सहित अन्य विभागों की तरह गश्त
2. अवैध लकड़ी परिवहन
3. वन्य जीव रेस्क्यू
4. दबिश डालने के समय हथियार
5. अतिरिक्त भत्ता,पटवारियों, ग्राम सेवकों सहित पुलिस के समान वेतन
6. कार्य प्रभावित कर्मकारों कैटल गार्ड, बेलदार सहित अन्य कार्मिकों को पदोन्नति का लाभ देने
7. वर्दी भत्ता 7 हजार और साइकिल भत्ता की जगह पेट्रोल भत्ता देने की मांग
बड़ा सवाल
इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि वनकर्मियों की हड़ताल से इंसानों और वन्य जीवों को जान-माल का नुकसान हो रहा है। उसकी जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा? क्योंकि हड़ताल के चलते न ही वन क्षेत्र की देखभाल हो पा रही है, न ही गश्ती हो पा रही है कोई जीव-जंतु अगर बीमार हो जाता है तो उसे देखने वाला भी कोई नहीं है, भूख-प्यास से बेहाल वन्य जीव जंगलों से रास्ता भटककर रिहाईशी इलाकों में जा रहे हैं, जिससे आम लोग उनका शिकार हो रहे हैं य़ही नहीं उन्हें उनकी जान से भी हाथ धोना पड़ रहा है। वनकर्मी अपनी मांगों के पूरी न होने का विरोध जताकर इससे पल्ला झाड़ रहे हैं तो सरकार इसे मानवता के नजरिए से वनकर्मियों की गलती बता रही है। यानी हड़ताल से अब इंसान और जानवरों दोनों की जान सासंत में आ गई है।