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भगवान राम की तपोभूमि है चित्रकूट, नहीं लगाई रामघाट में डुबकी तो नहीं होती परिक्रमा पूरी, जानिए क्या है पौराणिक कहानी

भगवान राम ने चित्रकूट में 'कामदगिरि पर्वत' पर तप और साधना कर आसुरों की ताकतों से लड़ने की दिव्य शक्तियां प्राप्त की थी। जिसके कारण चित्रकूट श्री राम की तपोस्थली भूमि कहलाई जाने लगी।
11:56 AM Jan 13, 2024 IST | BHUP SINGH

रामजन्मभूमि अयोध्या में 22 जनवरी को प्रभु श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा होनी है। पूरा देश इस समय राममयी हो रहा है। भारत में हिंदू धर्म के लिए तीर्थ यात्रा करना जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। चार धाम की तीर्थी यात्रा में चित्रकूट एक अहम पड़ाव है। चित्रकूट एक ऐसी जगह है, जहां की यात्रा के बिना आपकी तीर्थ यात्रा कभी पूरी नहीं होगी। दरअसल, रामायण में कामदगिरि पर्वत का विशेष महत्व है जो कि चित्रकूट में स्थित है जहां भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने करीब 11 साल गुजारे थे। इसके अलावा श्रीराम के तप करने के कारण ये स्थान श्री राम की तपोभूमि कहलाई और इसी स्थान पर भरत-मिलाप हुआ था।

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कामदगिरि पर्वत को श्रीराम ने दिया था वरदान

रामायण की पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्री राम ने इस पर्वत को छोड़ आगे बढ़ने की ठानी, तो पर्वत ने उन्हें चिंता जाहिर करते हुए बताया कि चित्रकूट की अहमियत सिर्फ श्री राम के वहां रहने तक ही थी और उनके वहां से चले जाने के बाद उस जगह को कोई नहीं पूछेगा। ये सुनकर भगवान श्री राम ने पवर्त को आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी इस पर्वत की परिक्रमा पूरा करेगा, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी और चित्रकूट धाम की यात्रा भी इस पर्वत की परिक्रमा के बाद ही संपन्न मानी जाएगी। इसके बाद से कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा पूरी करने पर लोगों की सारी मनोकमानाएं पूर्ण हो रही हैं।

रामघाट में डूबकी के बाद पूरी होती कामदगिरि पवर्त की परिक्रमा

कामदगिरि पर्वत की 5 किलोमीटर की परिक्रमा को पूरी करने की शुरुआत रामघाट में डुबकी के साथ होती है। ऐसी मान्यता है कि चित्रकूट में अपने निवार के वक्त श्रीराम इसी घाट में स्नान किया करते हैं और उन्होंने अपने पिता दशरथ का पिंड दान भी मंदिकिनी नदी के किनारे बने इस घाट पर ही किया था।

ब्रह्मा जी ने किया था यज्ञ

चित्रकूट आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था का सर्वश्रेष्ठ केंद्र माना जाता है। यह वह भूमि है, जहां पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव का निवास है। भगवान विष्णु ने भगवान राम रूप में यहां वनवास काटा था, तो ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए यहां यज्ञ किया था और उस यज्ञ से प्रकट हुआ शिवलिंग धर्मनगरी चित्रकूट के क्षेत्रफल के रूप में आज भी विराजमान है।

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