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मासूमों का दर्द न जाने कोय…मां-बाप के होते अनाथों की तरह बदहाल ‘नौनिहाल’

उदयपुर के झाड़ोल, फलासिया और कोटड़ा क्षेत्र के गांवों में मां-बाप होते हुए भी कई मासूम अनाथों जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं।
09:08 AM Aug 31, 2023 IST | Anil Prajapat
मासूमों का दर्द न जाने कोय…मां बाप के होते अनाथों की तरह बदहाल ‘नौनिहाल’

(ओम प्रकाश शर्मा) : जयपुर। उदयपुर के झाड़ोल, फलासिया और कोटड़ा क्षेत्र के गांवों में मां-बाप होते हुए भी कई मासूम अनाथों जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं। उनकी आंखें रो- रोकर सूख चुकी हैं। कुछ पड़ोसियों की मदद से पेट तो भर जाता है, पर अपनों को देखने के लिए आंखें तरसती रहती हैं। इस आदिवासी इलाके के अनगिनत घरों के बच्चों के दर्द को कम करने वाला, उन्हें सीने से लगाकर दुलारने वाला कोई नहीं है। इन बेबस बच्चों की उम्र 1 साल से 10 साल तक है। ये दरदर की ठोकरें खा रहे हैं। वजह है, नाता प्रथा, बेरोजगारी और नशा।

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‘सच बेधड़क’ ने जब ग्राउंड पर ऐसे मासूम बच्चों के दर्द को जाना तो रोंगटे खड़े करने वाली यह हकीकत सामने आई। पड़ताल में सामने आया कि ऐसे बच्चों के पिता मजदूरी के लिए गुजरात व मध्यप्रदेश चले जाते हैं। कई माह तक घर नहीं लौटते। घर पर जब कभी आते हैंतो गायब ही रहते हैं। ऐसे की जिम्मेदारी संभाल रही बच्चों की मां परिवार का पालन-पोषण नहीं कर पा रही है और बच्चों को अकेले ही घरों में छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति के साथ नाता करके अपना दूसरा घर बसा लेती है।

जिस परिवार में ऐसा हुआ, उसके बच्चे भगवान के भरोसे छोड़ दिए जाते हैं और अनाथों सी जिंदगी जीने को मजबूर हो जाते हैं। जब भूख लगती है तो वे पड़ोसियों से खाना मांगकर, जैसा भी लूखा-सूखा मिलता है, खाकर पेट भरते हैं। कई बार तो उन्हें एक वक्त खाने या भूखा सोने को मजबूर होना पड़ता है।

10 साल की बहन पर दो बच्चों की जिम्मेदारी

फलासिया कस्बे के बिजली गांव में रहने वाली 10 साल की जमुना पर दो छोटे भाइयों का पालने की जिम्मेदारी आ गई। उसके पिता पप्पू मजदूरी करते हैं, जो 3 से 4 दिन में एक बार घर आते हैं, जबकि मां अमरी ने 6 माह पहले उनको छोड़ किसी अन्य व्यक्ति के साथ नाता करके अपना घर बसा लिया। वैसे, अमरी कहां गई इसकी जानकारी किसी को नहीं है। आस-पास में रहने वाले जमुना और उसके मासूम भाइयों को यह दिलासा देकर शांत कर देते हैं कि उनकी मां मामा के घर पर गई हुई है, आ जाएगी।

तीनों मासूम बच्चे आस-पास के घरों खाना मांगकर अपना पेट भर रहे हैं और अनाथों-सा जीवनयापन कर रहे है। जमुना से पूछा तो उसने मासूमियत से कहा कि उनकी मां मामा के घर गई है। तीनों बच्चों को मां की याद तो आती है, लेकिन उनकी आंखें रो-रोकर सूख गई। भाई डेढ़ साल को मुन्ना घर से बाहर कोई महिला गुजरती है तो वह उसे ही मां समझकर रोने लगता है, तब जमुना पड़ोस के बच्चों के पास ले जाकर उसका ध्यान भटका कर उसे शांत कराती है।

पिता की मौत… मां छोड़ गई घर

पांच बेटियों पिता झाड़ोल के लक्ष्मीकांत की बीमारी से मौत हो गई। इनमें से दो बेटियों की शादी हो चुकी है। लक्ष्मीकांत की मौत के बाद पत्नी के शरी पर तीन बेटियों का पालनपोषण करने की जिम्मेदारी आ गई। आठ माह पहले के शरी तीनों बेटियों को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति के साथ नाता कर घर बसा लिया। अब बेटी तारा और रेखा पड़ोसियों से खाना मांगकर पेट भरकर अनाथों की भांति जी रही हैं। अब तीनों बेटियां मां की राह देखते हु ए थक चुकी हैं, फिर भी उम्मीद लगाए घर के आंगन में बैठी रहती है।

पड़ोसी ने संभाला, फिर भेजा अनाथालय

झाड़ोल कस्बे में रहने वाला देवीलाल मजदूरी के नाम पर गुजरात चला गया। देवीलाल के तीन बेटे हैं। छोटे बेटे की उम्र डेढ़ साल, दसू रे नंबर के बेटे की तीप साल और सबसे बड़े बेटे की उम्र पांच साल है। देवीलाल के घर नहीं आने से परेशान होकर उसकी पत्नी मिरकी तीनों बच्चों को जर्जर हो रहे है घर में छोड़कर चली गई। दो दिन तक भूखे-प्यासे बच्चे नंगे ही दर-दर भटकते रहे हैं। यह देख पड़ोसी रामलाल का दिल पसीजा तो उसने 10 दिन तक तो सार संभाल की, फिर तीनों बच्चों को शिक्षक दुर्गाराम मुवाल के सहयोग से अनाथालय में भेज दिया।

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