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अद्भुत है छत्तीसगढ़ के ढोलकल गणेश जी का मंदिर, 1000 साल पुरानी है यह मुर्ति

09:27 AM Feb 19, 2023 IST | Supriya Sarkaar
अद्भुत है छत्तीसगढ़ के ढोलकल गणेश जी का मंदिर  1000 साल पुरानी है यह मुर्ति

हमारे सनातन इतिहास को मिटाने की कोशिशें तो बहुत हुई, परंतु इसे मिटाया नहीं जा सका। मिटाते भी कैसे, यह तो विश्व में हर जगह फैला हुआ है। 1000 साल पुराना रहस्यमय भगवान गणेश तीर्थस्थल छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में ढोलकल पहाड़ पर 3000 फीट की ऊंचाई पर घने जंगल के बीच अवस्थित है। ढोलकल गणेश जो कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले से 18 किलोमीटर दूर फरसपाल गांव के पास बैलाडीला पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर को लेकर कई किंवदंतियां स्थानीय लोगों में प्रचलित हैं।

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विशेषज्ञों का मानना है कि भगवान गणेश की यह विशालकाय और प्राचीन मूर्ति लगभग 1000 वर्ष से अधिक पुरानी है। इस मूर्ति को नागवंशी शासकों के शासन काल में 9वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य बनाया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम, भगवान महादेव से मिलना चाहते थे, लेकिन गणेशजी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें इंतजार करने को कहा।

परशुरामजी इस तरह रोके जाने से क्रोधित हो गए और गणेशजी और परशुरामजी के मध्य युद्ध हो गया। इसी दौरान युद्ध करते हुए दोनों धरती लोक पर पहुंच गए। यहां पर परशुरामजी के फरसे के वार से गणेशजी का एक दांत टूट गया। ऐसा माना जाता है कि जिस जगह पर धरती लोक में यह युद्ध हुआ, वह स्थल बैलाडीला पर्वत श्रेणी है।

इतनी ऊंचाई पर कैसे आई प्रतिमा 

ढोलकल की गणेश प्रतिमा को ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 3 फीट और चौड़ाई लगभग 3.5 फीट है। इस मूर्ति में गणेश जी ने अपने ऊपरी दाएं हाथ में फरसा और ऊपरी बाएं हाथ में अपना टूटा हुआ दांत पकड़ा हुआ है। निचले दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में मोदक पकड़े हुए हैं।

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यह ढोलकल गणेश मंदिर अपने आप में एक रहस्य लिए हुए है, क्योंकि यहां मानव बसावट से दूर घने जंगल के बीच 3000 फीट की ऊंचाई पर इस मूर्ति को स्थापित करने का कारण किसी को आज तक नहीं पता। इसलिए यह एक भारी रहस्य बना हुआ है। यह भी कोई नहीं जानता कि इतनी ऊंचाई पर गणेश की यह प्रतिमा कैसे पहुंची या इस प्रतिमा को यहीं बनाया गया था?

अंग्रेज भू-वैज्ञानिक ने की प्रतिमा की खोज 

यह बहुत हैरानी की बात है कि इस प्राचीन गणेश प्रतिमा की खोज एक अंग्रेज भू-वैज्ञानिक क्रूकशैंक ने सन् 1934 में की थी। इसके बाद भी यह प्राचीन मूर्ति लोगों की पहुंच से परे थी। इसके बाद 2012 में एक पत्रकार ने अनजाने में अपने रेगुलर ट्रेक के दौरान इस मुर्ति को दोबारा ढूंढ निकाला और अपने फोटोग्राफ की सहायता से इससे लोगों को परिचित करवाया। इसके बाद से यहां बहुत सारे लोग ढोलकल गणेश के दर्शन करने पहुंच रहे हैं। यह जगह प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है, और उन लोगों के लिए जो हरे-भरे पहाड़ाें के बीच ट्रेकिंग करना पसंद करते हैं।

प्रतिमा के पेट पर नाग का चित्र

– पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है, तब यहां नागवंशी राजाओं का शासन हुआ करता था।

– गणेश प्रतिमा के पेट पर नाग का चित्र अंकित है। इस आधार पर भी यह माना जाता है कि इसकी स्थापना नागवंशी राजाओं के द्वारा की गई होगी। यह प्रतिमा पूरी तरह सुरक्षित और ललितासन में है। इसको ऊंचाई पर ले जाने या इसे बनाने के लिए कौन सी तकनीक अपनाई गई, यह अपने आप में एक बहुत बड़ा रहस्य है।

– आर्कियोलॉजिस्ट के अनुसार पूरे बस्तर में ऐसी प्रतिमा और कहीं नहीं पाई जाती है। इसलिए यह रहस्य और भी गहरा हो जाता है कि ऐसी एक ही प्रतिमा यहां कहां से और कैसे आई।

– परशुराम केफरसे से गणेश जी का दांत टूटा था, इसलिए पहाड़ी के शिखर के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा गया।

– यह भी कहा जाता है कि यहां कि गणपति की प्रतिमा ढोलक के आकार की तरह दिखती है, इसीलिए इस पहाड़ी का नाम ढोलकल पड़ा। इसे ढोलकट्टा भी कहते हैं।

– बगल में कोतवाल पारा गांव है। कोतवाल मतलब रक्षक या पहरेदार। – – लोग यहां गणेश जी को ही अपने क्षेत्र का रक्षक मानते हैं।

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