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सप्तमी के दिन मनाया जाएगा शीतला माता का बास्योड़ा, जानें प्रसादी में क्यों करते हैं ठंडा भोजन?

01:11 PM Mar 29, 2024 IST | Sanjay Raiswal

जयपुर। इस साल अप्रैल महीने की शुरुआत शीतला माता की पूजा से होगी। इस बार चैत्र कृष्ण सप्तमी एक अप्रैल यानी सोमवार को है। उसी दिन बास्योड़ा पर्व मनाया जाएगा। यानी शीतलाष्टमी का त्योहार इस बार सप्तमी को ही मनाया जाएगा, जबकि रांधा-पुआ रविवार को मनेगा।

दरअसल, इस बार चैत्र कृष्ण की अष्टमी के दिन मंगलवार पड़ रहा है। जिसके कारण शीतला माता को ठंडे व्यंजनों का भोग एक दिन पहले सोमवार को चढ़ाया जाएगा। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, मंगलवार को गर्म और सोमवार को शीतल दिन माना गया है। इसी तरह चैत्र की छठ के दिन रांधा पुआ व सप्तमी को बसौड़ा पर्व मनाया जाएगा। मान्यता है कि शीतला माता की पूजा और व्रत करने से चेचक समेत कई बीमारियां और संक्रमण से बचाव होता है। ये समय शीत ऋतु के जाने और ग्रीष्म ऋतु के आने का भी है।

1 अप्रैल की रात को आ जाएगी अष्टमी तिथि

ज्योतिषों के अनुसार, इस बार चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि 1 अप्रैल को रात्रि 9:09 बजे से शुरू होगी। जो 2 अप्रैल को रात्रि 8:08 बजे तक रहेगी। 2 अप्रैल को मंगलवार होने की वजह से 1 अप्रैल को ही शीतला सप्तमी के दिन माता के भोग लगाया जाएगा और ठंडा भोजन किया जाएगा। ऐसे में 1 अप्रैल को लोकपर्व बास्योड़ा मनाया जाएगा।

इस दिन शीतला माता की पूजा-अर्चना करने के साथ महिलाएं व्रत भी रखेंगी। इसके एक दिन पहले 1 अप्रैल को रांधा पुआ होगा, जिसमें घर-घर महिलाएं शीतलाष्टमी (बास्योड़ा) के लिए भोजन पकवान बनाएगी। शीतलाष्टमी के दिन सुबह शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाएगा। इसके बाद लोग ठंडे पकवान ही खाएंगे। बास्योड़ा पर शीलता माता को ठंडा भोजन अर्पित कर चेचक आदि बीमारियों से परिवार को बचाने की प्रार्थना की जाएगी।

कौन हैं शीतला माता

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शीतला माता ठंडकता प्रदान करती हैं। इस दिन मां शीतला का पूजन करने से कई तरह के दुष्प्रभावों से भक्तों को मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि माता शीतला का व्रत रखने से कई तरह के रोग दूर होते हैं। इसके साथ ही लोग पूरे साल चर्म रोग व चेचक जैसी बीमारियों से दूर रहते हैं।

मां शीतला को लगाते हैं बासी खाने का भोग

शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला को बासी ठंडे खाने ही भोग लगाते हैं, जिसे बसौड़ा कहा जाता है। यही बासा भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

ठंडा खाने की परंपरा

शीतला माता का ही व्रत ऐसा है, जिसमें शीतल यानी ठंडा भोजन करते हैं। इस व्रत पर एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन करने की परंपरा है। इसलिए व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। ऋतुओं के बदलने पर खान-पान में बदलाव हो जाता है। इस पर्व से इसलिए ठंडा खाना खाने की परंपरा बनाई गई है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडा खाने से संक्रमण और अन्य बीमारियां नहीं होती।

बीमारियों से बचने के लिए करते है व्रत

माना जाता है कि देवी शीतला चेचक और खसरा बीमारियों को नियंत्रित करती हैं और लोग उन बीमारियों को दूर करने के लिए पूजा करते हैं। सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की सलामती के लिए और घर में सुख, शांति के लिए बास्योड़ा के दिन प्रसादी बनाकर अगले दिन माता को पूजा जाता है।

इस बार 2 दिन भरेगा शीतला माता लक्खी मेला

जयपुर के चाकसू शील की डूंगरी स्थित शीतला माता मंदिर में भी लक्खी मेला इस बार दो दिन भरेगा। सप्तमी के दिन ही भोग अर्पित किया जाएगा। मंदिर श्री शीतला माता ट्रस्ट के महामंत्री लक्ष्मण प्रजापति ने बताया कि प्रदेश का प्रसिद्ध व ऐतिहासिक श्री शीतला माता का दो दिवसीय लक्खी मेला 31 मार्च से 1 अप्रैल तक आयोजित होगा। श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सभी आवश्यक व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दे दिया गया है।

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