गुर्जर वोट पर नजर, भाजपा की पिछले चुनाव में छिटके गुर्जर वोट साधने की कोशिश
विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने के भाजपा के ऐलान पर पार्टी ने काम करना शुरू कर दिया है। चुनावी साल शुरू होते ही पार्टी ने सियासी माहौल में अपना पहला मास्टर कार्ड खेलते हुए पीएम मोदी की मौजूदगी में गुर्जरों को फिर से अपनी तरफ खींचने का दांव खेल दिया। पिछले विधानसभा चुनाव से प्रदेश में परंपरागत रूप से भाजपा के खेमे में माने जाने वाले गुर्जर मतदाता पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने वाले कारणों में से एक प्रमुख कारण था। पिछली बार गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रों में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था।
गुर्जर समाज ने एकतरफा कांग्रेस को समर्थन दिया था। उस समय कांग्रेस की कमान प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर सचिन पायलट के पास थी। गुर्जरों को उम्मीद थी कि सत्ता आने पर पायलट को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलेगा, लेकिन अब हालात दूसरे नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री के खिलाफ पायलट व उनके समर्थकों की बयानबाजी से गुर्जरों में मैसेज पहुंचा है कि उनके नेता की कांग्रेस में उपेक्षा हो रही है।
भांपा गुर्जरों का माहौल!
गुर्जरों के इस माहौल को भांपते हुए प्रधानमंत्री मोदी का मालासेरी में भगवान श्री देवनारायण के अवतार महोत्सव में आने का कार्यक्रम बनाया गया। खास बात यह रही है कि इस मंच पर अन्य किसी भी नेता को तवज्जो नहीं दी गई। हालांकि, यह राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था, लेकिन इसके बावजूद देशभर से जुटे गुर्जरों के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने समाज के हर उपेक्षित एवं वंचित तबके को सशक्त करने का प्रयास किया है और वह ‘वंचितों को वरीयता’ मंत्र को लेकर आगे बढ़ रही है। मोदी के इस मंत्र में सियासी संदेश भी छिपा हुआ था।
14 जिलों में प्रभाव
राजस्थान के 14 जिलों में गुर्जरों का प्रभाव है। इन जिलों में 12 लोकसभा क्षेत्र और 40 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। यहां जीत-हार का फैसला गुर्जर ही करते हैं। आज इन सीटों पर यह फैक्टर इतना हावी है कि ना चाहते हुए भी इन इलाकों में विधायकों और जनप्रतिनिधियों को पायलट फैक्टर का ध्यान रखना पड़ रहा है। ऐसे में कांग्रेस नेता सचिन पायलट भी अब भाजपा द्वारा गुर्जरों के बीच शुरू किए गए मिशन को धराशायी करने के लिए गुर्जर बाहुल्य जिलों में दौरे के तैयारी कर चुके हैं।
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