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रूस के चांद मिशन को लगा बड़ा झटका, पानी की खोज के लिए गया लूना-25 चंद्रमा की सतह से टकराकर क्रैश

रूस के चंद्रमा मिशन को सोमवार को बड़ा झटका लगा है। चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग की तैयारी में लगा लूना-25 क्रैश हो गया है।
03:57 PM Aug 20, 2023 IST | Anil Prajapat

Luna-25 crash : नई दिल्ली। रूस के चंद्रमा मिशन को सोमवार को बड़ा झटका लगा है। चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग की तैयारी में लगा लूना-25 क्रैश हो गया है। रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्‍कोस्‍मोस ने इसकी पुष्टि कर दी है। एजेंसी के मुताबिक लूना-25 प्रपोल्‍शन मैनूवर के समय चंद्रमा की सतह से टकरा गया था। इस वजह से ही वह दुर्घटना का शिकार हो गया है।

बता दें कि साल 1976 में लूना-24 नमूना वापसी मिशन के बाद लूना-25 रूस का पहला चांद मिशन था। लेकिन, अब इसके क्रैश होने से रूस को बड़ा झटका लगा है। वहीं, भारत का चंद्रयान-3 23 अगस्त को शाम 6 बजे के आसपास चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करेगा।

कल आई थी लूना-25 यान में तकनीकी खराबी

इससे पहले शनिवार को चंद्रमा पर लैंडिंग से ठीक पहले लूना-25 अंतरिक्ष यान में तकनीकी खराबी आई थी। जिसके बाद रोस्कोस्मोस ने कहा था कि ऑपरेशन के दौरान ऑटोमेटिक स्टेशन पर एक असामान्य स्थिति उत्पन्न हुई है, जिसने निर्दिष्ट मापदंडों के साथ अंतरिक्ष यान को मनुवर करने की अनुमति नहीं दी और विशेषज्ञ हालात का विश्लेषण कर रहे हैं।

वहीं, फ्रांस के अंतरिक्ष विज्ञानी और उल्‍कापिंडों पर अध्‍ययन करने वाले फ्रैंक मार्चिस ने कहा था कि लूना-25 का अंत चंद्रमा पर हो सकता है। रोस्कोमोस ने इससे इनकार नहीं किया है और पिछले 10 घंटों से अंतरिक्ष यान से कोई संपर्क नहीं हुआ है।

कब लॉन्च हुआ था लूना-25?

गौरतलब है कि रूसिया के वोस्तोचन स्पेसपोर्ट से 10 अगस्त को सोयुज 2.1v रॉकेट से लूना-25 को लॉन्च किया गया था। इसके 21 अगस्त को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की उम्मीद थी। लेकिन, एक दिन पहले ही लूना-25 क्रैश हो गया और रुस के चांद मिशन पर पानी फिर गया। लूना-25 ने बुधवार को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था।

इसके बाद रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने 17 अगस्त को लूना-25 की भेजी गई चंद्रमा की तस्वीर को भी शेयर किया था। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग के लिए लूना-25 ने छोटा रास्‍ता अपनाया है। इस रास्‍ते के बारे में दुनिया की किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी को पता नहीं है। अगर रूस का मिशन सफल होता तो वह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर एक साल तक पानी की खोज करता।

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