गरीबी से लड़ युवक ने बजाया ISRO में डंका, Chandrayaan-3 का हिस्सा बने भरत, मां के साथ ठेले पर धोते थे प्लेट
नई दिल्ली। प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। कोई भी बाधा प्रतिभा को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती हैं। जरूरत है प्रतिभाओं को मौका देने की। कुछ ऐसी ही कहानी है छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के भरत कुमार की। जिसने फीस के अभाव में स्कूल से निकाले जाने के बाद भी जीत की जिद नहीं छोड़ी। आज उसका इसरो में भी डंका बज रहा है। भरत ने गरीबी को मात देते हुए आईआईटी धनबाद से इंजीनियरिंग करने के बाद इसरो जॉइन किया और मिशन चंद्रयान 3 में अहम भूमिका निभाई। वो मिशन चंद्रयान-2 में भी काम कर चुके हैं।
भिलाई शहर के चरोदा क्षेत्र में रहने वाले भरत कुमार गरीबी में पले और पढ़ाई की। उनके पिता बैंक में नौकरी करते थे और मां इडली का ठेला लगाती थी। भरत जब स्कूल में पढ़ाई करते थे, तब वो ठेले पर भी काम में अपनी मां का हाथ बंटाते थे। वो ठेले पर बैठकर प्लेट धोते थे। साथ ही ग्राहकों को चाय भी देते थे। लेकिन, भरत ने अपनी पढ़ाई में भी कोई कमी नहीं की। लेकिन, कहते है कि गरीबी ना जाने क्या रंग दिखाई है।
पैसे की तंगी के चलते टीसी कटवाई की आई नौबत
कुछ ऐसा ही भरत के साथ भी हुआ। जब वो 9वीं कक्षा में थे और चरौदा के केंद्रीय विद्यालय पढ़ते थे। उन दिनों पैसे की तंगी के चलते वो फीस जमा नहीं करा पाए। ऐसे में उनके सामने टीसी कटवाने की नौबत आ गई थी। लेकिन, कहते है कि प्रतिभाओं को मौका मिले तो वो कुछ भी कर सकते है। कुछ लोगों ने भरत की मदद की। स्कूल ने भरत की फीस माफ की और शिक्षकों ने कॉपी-किताब का खर्च उठाया। भरत ने 12वीं में मेरिट में आए।
इंजीनियरिंग के 7वें सेमेस्टर में था, तब इसरो में चयन
इसके बाद भरत का आईआईटी धनबाद के लिए चयन हो गया। हालांकि, आर्थिक समस्या आई तो रायपुर के उद्यमी अरुण बाग और जिंदल ग्रुप ने भरत का सहयोग किया। वहां से मैकेनिकल इंजीनियर में टॉप किया और गोल्ड मेडल जीता। भरत इंजीनियरिंग के 7वें सेमेस्टर में था, तब इसरो में वहां से अकेले भरत का प्लेसमेंट हुआ था। इसके बाद उसने इसरो ज्वाइन किया। यहां उसने चंद्रयान दो और तीन मिशन में अपना सहयोग देकर भिलाई शहर का नाम पूरे विश्व में रोशन किया।
पढ़ाई के बाद घर के काम भी करता था भरत
भरत के पिता के चंद्रमोहन का कहना है कि भरत बचपन से ही काफी तेज था। सुबह 4 बजे पढ़ाई के लिए उठ जाता है। तीसरी से कक्षा से 12वीं तक उसने केंद्रीय स्कूल में पढ़ाई की। 10 में 93 और 12वीं में 94 प्रतिशत अंक से पास हुआ था। भरत के पिता का कहना है कि उन्होंने कभी भरत को पढ़ने के लिए नहीं टोका। दिन में स्कूल से आने के बाद वो अपनी मां के साथ दुकान में हाथ बटाता था। इसके बाद सुबह 4 बजे से उठकर खुद ही पढ़ाई करने बैठ जाता था। स्कूल में हमेशा फर्स्ट आता था। उसका सपना था कि वो बड़ा होकर वैज्ञानिक बने और उसने वो सपना आज पूरा कर दिया।
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