अशोक गहलोत की 'जादूगरी' का कमाल, राजनीतिक सफर में यूं बढ़ता गया गहलोत का कद, पढ़ें- पूरी रिपोर्ट
राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) का सियासी सफर काफी दिलचस्प रहा है। उन्होंने राजस्थान की राजनीति में बड़े उलट-फेर तक कर दिए हैं। उनकी इस राजनीतिक जादूगरी की कमाल अब कांग्रेस के राष्ट्रीय पटल पर भी दिख रहा है औऱ आगे आने वाले समय में औऱ भी दिलचस्प गतिविधियां देखने को मिल सकती हैं। कांग्रेस की तरफ से अध्यक्ष पद के लिए नामित अशोक गहलोत का जन्म 3 मई 1951 को राजस्थान के जोधपुर जिले में हुआ था। इनके पिता लक्ष्मण सिंह गहलोत जादूगर थे। इनके पूर्वजों का पेशा भी जादू दिखाना ही था। अशोक गहलोत ने भी अपने पिता लक्ष्मण सिंह से ही जादू सीखा था। उन्होंने राजनीति में आने से पहले जादूगिरी में भी अपने पिता का हाथ बंटाया था।
NSUI में शामिल होकर राजनीति में रखा कदम
बेहद करीब से जिंदगी को जीने वाले अशोक गहलोत छात्र जीवन से ही राजनीति की तरफ झुकने लगे थे। इस दौरान भी खूब समाज सेवा भी करते थे। ग्रेजुएशन के दौरान अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने छात्रसंघ के जरिए राजनीति पहली सीढ़ी चढ़ने का अवसर मिला। उन्होंने छात्र संगठन NSUI में शामिल होकर इसे तेज धार देनी शुरू कर दी। अशोक गहलोत ने विज्ञान और कानून विषय में में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और अर्थशास्त्र विषय से स्नातकोत्तर किया। इस दौरान साल 1973 से लेकर 1979 तक वे कांग्रेस पार्टी के छात्र संगठन NSUI राजस्थान के अध्यक्ष भी रहे।
5 बार सांसद, 3 बार केंद्रीय मंत्री, 3 बार मुख्यमंत्री
इस बीच अशोक गहलोत 27 नवम्बर, 1977 को सुनीता गहलोत के साथ वैवाहिक बंधन में बंधे। गहलोत के एक बेटे वैभव गहलोत और एक बेटी सोनिया गहलोत हैं। साल 1980 में अशोक गहलोत 7वीं लोकसभा के लिए साल पहली बार जोधपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए। उन्होंने जोधपुर का 8वीं, 10वीं,11वीं और 12वीं लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान उन्होंने तीन बार केंद्रीय मंत्री के तौर भी कार्यभार संभाला। इन्दिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में अशोक गहलोत साल 1982 से 1984 तक पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री रहे। उन्होंने कुछ वक्त के लिए खेल मंत्रालय भी संभाला।
अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के इन कार्यों से इंदिरा गांधी बेहद प्रभावित हुईं। इंदिरा गांधी ने उन्हें केन्द्र सरकार में राज्य मंत्री बनाया। 1984 से 26 सितम्बर, 1985 तक अशोक गहलोत ने केन्द्रीय पर्यटन और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्होंने कपड़ा राज्य मंत्री का पद संभाला। गहलोत इस मंत्रालय के 1991 से 1993 तक मंत्री रहे।
साल 1999 में जोधपुर से विधायक बनने का सिलसिला अब तक जारी
साल 1999 में जोधपुर के सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। अशोक गहलोत साल 1998 में पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। अपने इसी कार्यकाल में उन्होंने कई अहम उपलब्धियां हासिल कर ली। उन्होंने सूखा प्रबन्धन, विद्युत उत्पादन, रोजगार, औद्योगिक विकास, पर्यटन विकास, के मोर्चे पर उल्लेखनीय कार्य किए। यहां तक कि जब राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा। उन्होंने बेहद समझदारी से इस अकाल में प्रबन्धन किया। अकाल प्रभावित लोगों के पास अनाज पहुँचाने से लेकर उनकी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने तक उन्होंने बेहद अहम कार्य किए।
इसके बाद साल 2003 में उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र का चुनाव जीता लेकिन इस साल कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई थी। तब भाजपा की सरकार राजस्थान में बनी थी और वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री का पद संभाला था। लेकिन साल 2008 में कांग्रेस ने दूसरी बार राजस्थान का विधानसभा का चुनाव जीता और अशोक गहलोत ने दोबारा मुख्यमंत्री का पद संभाला।
समाजसेवा में हमेशा अग्रणी रहे गहलोत
अशोक गहलोत अपने छात्रजीवन से ही समाजसेवा में दिलचस्पी रखते थे औऱ यह सिर्फ दिलचस्पी ही नहीं थी वे पूरी शिद्दत से लोगों की सेवा भी करते थेय़। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है साल 1971 का। दरअसल इस साल जब पूर्वी पाक्सितान अलग होकर बांग्लादेश बन गया था और वहां हिंसा भड़क गई थी तब कई बंगाली शरणार्थी भारत आए थे। इन विकट हालातों के दौरान अशोक गहलोत ने शरणार्थी शिविरों में सेवा की। पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने भी शरणार्थी शिविर के दौरे के दौरान अशोक गहलोत से मुलाकात की। इस शरणार्थी स्थल पर ही इंदिरा गांधी ने अशोक गहलोत के लोगों की सेवा करते हुए देखा औऱ उनके संगठनात्मक कार्यशैली और कुशलता को पहचाना। इसके बाद ही इंदिरा गांधी अशोक गहलोत को NSUI राजस्थान के पहला अध्यक्ष चुना था।
चाय और बिस्किट के शौकीन
आम लोगों की तरह अशोक गहलोत चाय और बिस्किट के बेहद शौकीन हैं। गहलोत को करीबी से जानने वाले लोगों का कहना है कि गहलोत अपने साथ हमेशा पार्लेजी बिस्किट का पैकेट डरूर रखते हैं औऱ कबी भी उनका चाय पीने मन हो जाता है। यहां तक बीच रास्ते में अगर उन्हें चाय की तलब उठ जाए तो गाड़ी सड़क किनारे खड़ी करवाकर किसी भी चाय की थड़ी पर चाय पीते हैं।
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