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पुरातत्वविदों का अध्ययन, भालू से जुड़ी प्राचीन कपड़ों की कहानी

07:37 AM Jan 08, 2023 IST | Supriya Sarkaar
पुरातत्वविदों का अध्ययन  भालू से जुड़ी प्राचीन कपड़ों की कहानी

बर्लिन । जर्मनी में पुरातत्वविदों ने कपड़ों के इस्तेमाल के कुछ शुरुआती सबूतों को उजागर किया है। गुफा में रहने वाले भालू के पंजे पर खोजे गए कट के नए निशान से पता चलता है कि लगभग 3 लाख साल पहले प्रागैतिहासिक जानवरों की खाल उनके फर के लिए उतारी गई थी।

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उत्तरी जर्मनी के शॉनिंगन में यह खोज बेहद रोमांचक है, इंसानों ने अपने शरीर को कैसे ढंका और कठोर सर्दियों में किस तरह जीवित रहे थे। फर, चमड़ा और अन्य कार्बनिक पदार्थ आमतौर पर 1,00,000 साल से ज्यादा संरक्षित नहीं रह सकते। प्रागैतिहासिक कपड़ों के प्रत्यक्ष सबूत बहुत कम हैं।

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भालू के ‘कोट’ का उपयोग

भालू का ‘कोट’ अच्छा इन्सुलेशन प्रदान करता था और साधारण कपड़े या बिस्तर बनाने के लिए सबसे उपयुक्त था। कपड़ों में संभवतः खाल शामिल होती थी, जो सिलाई के बिना शरीर के चारों ओर लपेटी जाती थी। कपड़ों को सिलने में इस्तेमाल होने वाली सुई पुरातात्विक रिकॉर्ड में करीब 45,000 साल पहले तक नहीं पाई जाती। शोधकर्ताओं के लिए यह पता लगाना चुनौतीपूर्ण है कि कपड़ों का इस्तेमाल कब शुरू हुआ था।

25,000 साल पहले विलुप्त हो गया केव बियर

जर्मनी की तुबिंगेन यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट के छात्र और अध्ययन के लेखक इवो वेरहेजेन ने कहा, ‘शुरुआती समय की सिर्फ कुछ साइटें ही भालू की खाल उतारे जाने के सबूत दिखाती हैं, जिनमें शॉनिंगेन सबसे महत्वपूर्ण है।’ गुफा में रहने वाले भालू बड़े जानवर थे, जिनका आकार ध्रुवीय भालू के बराबर था। वे करीब 25,000 साल पहले विलुप्त हो गए थे। गुफा में रहने वाले भालू के ‘कोट’ पर लंबे बाल होते थे।

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