होमइंडिया
राज्य | राजस्थानमध्यप्रदेशदिल्लीउत्तराखंडउत्तरप्रदेश
मनोरंजनटेक्नोलॉजीस्पोर्ट्स
बिज़नेस | पर्सनल फाइनेंसक्रिप्टोकरेंसीबिज़नेस आईडियाशेयर मार्केट
लाइफस्टाइलहेल्थकरियरवायरलधर्मदुनियाshorts

Anu Rani : कभी दौड़ने के लिए नहीं थे जूते, मुश्किलों से भरा रहा है अन्नू रानी का गोल्ड जीतने का सफर

02:43 PM Oct 04, 2023 IST | Mukesh Kumar

Anu Rani : यूपी के मेरठ के सरधना तहसील के बहादुरपुर गांव निवासी एथलीट अनु रानी ने आज भाला फेंक इवेंट में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता है। इस जीत के बाद उन्हें बधाईयों का तांता लग गया है, गोल्ड मेडल जीत के बाद अनु रानी के गांव में खुशी की लहर दौड़ गई है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अनु रानी के शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें बधाई दी है। सीएम ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'X' पर योगी आदित्यनाथ को बधाई दी है, अनु रानी आपको अद्भुत गोल्डन थ्रो पर। उन्होंने कहा है कि 62.92 मीटर का थ्रो शानदार था। जो आपकी प्रतिभा और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। आपकी उपलब्धियाँ हम सभी को प्रेरित करती हैं। जय हिन्द!'

यह खबर भी पढ़ें:-World Cup Records : विश्व कप में इन 5 खिलाड़ियों का रिकॉर्ड तोड़ना असंभव, 2 पर है क्रिकेट के भगवान का

बचपन से ही इसमें अपना करियर बनाना चाहती थी: अनु रानी

बता दें कि अनु रानी का जन्म किसान परिवार में हुआ था, बच्चप से ही उनका भाला फेंक का जूनून सवार था। अनु रानी बचपन से ही इसमें अपना करियर बनाना चाहती थी, लेकिन उनके पिताजी इसके लिए तैयार नहीं थे। हालांकि, उन्होंने पिता को मनाना जारी रखा था। अनु रानी के पिता अमरपाल सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया है कि हम बहुत छोटे किसान है। मेरे दो बेटे और तीन बेटियां हैं। इनमें अनु (28) सबसे छोटी है। अनु रानी मेरी सबसे छोटी बेटी है।

गांव में अनु रानी ने ऐसे सीखा भाला फेकना
छोटी बिटिया अनु रानी को भाला फेकने का शौक कैसे लगा यह सवाल पूछे जाने पर पिता अमरपाल सिंह ने बातया, ‘बड़े भाई उपेंद्र और अपने चचेरे भाइयों को देखकर अनु रानी का इस तरफ झुकाव हुआ उस वक्त वह नौंवी कक्षा में पढ़ती थी। बड़ा भाई उपेन्द्र उस वक्त यूनिवर्सिटी स्तर पर दौड़ और भाला फेंक में हिस्सा लेता था। उन्हें अपनी बहन के थ्रो में कुछ खास लगा। उन्हें लगा कि अनु भी भाला फेंक सकती है।’

उन्होंने बताया कि बेटे ने घर आकर मुझे इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी, कहा-बेटी है, अकेली कहां जायेगी? इसके खेल और खुराक का खर्चा कैसे उठाएंगे? क्योंकि हम छोटे किसान हैं। गांव में हमारे पास थोड़ी बहुत ही जमीन है। उस वक्त उपेंद्र 1500, 800, 400, 5 हजार मीटर की दौड़ और भाला फेंक का खिलाड़ी था।

अमरपाल बताया कि ‘मेरे लाख मना करने के बावजूद मेरा बेटा उपेन्द्र अपनी बहन को सुबह-सुबह अपने साथ खेतों में ले जाता और गन्ने का भाला बनाकर उससे अभ्यास कराता था। अनु रानी के पास दौड़ने के लिए अच्छे जूते नहीं थे, तो वह भाई के जूते पहनकर दौड़ती थी। दोनों के पैरों का साइज एक था। यह अनु रानी की खेल प्रतिभा है कि उसने आज न सिर्फ परिवार और अपने गांव का बल्कि देश का नाम रोशन कर दिया है।

अमरपाल कहते हैं, बाद में स्कूल के टीचरों ने भी बिटिया की प्रतिभा का जिक्र करते हुए उसकी सिफारिश की, जिसके बाद उन्हें बेटी की बात माननी पड़ी। अमरपाल ने कहा, ‘मुझे गांव के लोगों से जब बेटी की आज की कामयाबी का पता चला तो मैं बता नहीं सकता कि मुझे कितनी खुशी हुई है। मुझे मेरी बेटी की प्रतिभा पर गर्व है।

अमरपाल ने कहा, पहले मुझे डर लगता था कि बेटी को खेलने के लिए दूर-दूर जाना पड़ेगा। लेकिन अब मेरी बेटी अपने खेल में बहुत आगे निकल गई है कि चीन के हांगझोउ शहर में खेले जा रहे एशियाई खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत लिया।

Next Article