Jaipur : अनिश्चय के बीच ब्यूरोक्रेसी हुई हावी, MLA कर चुके अफसरों की निंदा
Jaipur : प्रदेश में पिछले एक वर्ष में लगातार अवसर की राजनीति के चलते जनता के मुद्दे पीछे छूटते गए हैं। जनता और कर्मचारियों की मानें तो इस समय सभी का ध्यान इस ओर अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। खाद्य सुरक्षा में नाम जुड़वाने के लिए लोग घूम रहे हैं, स्थानांतरण में भी विधायक लाचार नजर आ रहे हैं। कांग्रेसनीत सरकार में जनता के मुद्दों को तरजीह दी जाती रही है। ऐसे में गुड गर्वनेंस का माहौल दोनों तरफ रहता आया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पिछले कार्यकाल में ब्यूरोक्रेसी में कभी भी सीधा या जनता से जुड़ा विवाद सामने नहीं आया।
विधायक भी काम के लिए धरने पर
वर्तमान में देखा जा रहा है कि ब्यूरोक्रेसी नेताओ पं र भारी पड़ रही है। अधिकतर नए विधायक राजनीतिक मामलों के जानकार हैं जबकि सरकारी कार्य निष्पादन के बारे में वे इतना अनुभव नहीं रखते। ऐसे में वे बार बार अधिकारियों से बात करते हैं। अधिकारी उन्हें नियमों का हवाला देते रहते हैं और काम पेंडिंग चलता रहता है। कांग्रेस की ही विधायक दिव्या मदेरणा ने सार्वजिनक रूप से अधिकारियों पर मनमानी करने और विधायकों की बात नहीं सुनने की बात कही थी। ऐसे ही एक अन्य घटनाक्रम में बसपा से आए राजेन्द्र गुढ़ा ने तो अपनी बात को लेकर थाने में ही धरना दे दिया था।
कांग्रेस में बगावत के बाद बदल गए सुर
पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की बगावत के बाद निर्दलीयों, बसपा सदस्यों के साथ बीटीपी सदस्यों ने सहयोग देकर गहलोत सरकार को बचाया। इस सहयोग ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी उनके प्रति उदार होने के लिए मजबूर कर दिया। विधायकों ने अपने सभी किए जा सकने या ना होने वाले कार्य करवाने के लिए अधिकारियों को कहना शुरू किया। एक दसू रे विधायकों के क्षेत्र में भी काम करने के दबाव के बाद अधिकारी बात टालते गए। साथ ही नियमों का भी हवाला देते रहे। वर्तमान में भी अधिकांश स्थानांतरण सीधे सीएमआर से ही हो रहे हैं। विधायकों की अनुशंसा नहीं चल रही है।