खतरे की घंटी, 2100 तक विलुप्त हो जाएंगे 83% ग्लेशियर
वॉशिंगटन। दुनिया के ग्लेशियर वैज्ञानिकों की कल्पना से कहीं ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। एक नए अध्ययन से यह पता चला है कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए इनमें से दो तिहाई ग्लेशियर का सदी के अंत तक अस्तित्व खत्म होने की आशंका है। वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर दुनिया भविष्य के वैश्विक ताप को एक डिग्री के दसवें हिस्से से कुछ ज्यादा तक सीमित कर सकती है और अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल कर सकती है, तो दुनिया के आधे से कम ग्लेशियर ही गायब होंगे, लेकिन इसके आसार कम हैं।
2,15,000 ग्लेशियर का अध्ययन
अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि ज्यादातर छोटे, लेकिन जाने-पहचाने ग्लेशियर विलुप्त होने की कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि तापमान के कई डिग्री तक बढ़ने की सबसे खराब स्थिति में दुनिया के 83 प्रतिशत ग्लेशियर 2100 के अंत तक विलुप्त हो सकते हैं। पत्रिका ‘साइंस’ में गुरुवार को प्रकाशित इस अध्ययन में दुनिया के 2,15,000 जमीन आधारित ग्लेशियर का अध्ययन किया गया है। इनमें ग्रीनलैंड और अंर्टाकटिक में बर्फ की चादर पर बने ग्लेशियर शामिल नहीं हैं।
बर्फ पिघलने से बढ़ेगा समुद्र स्तर
वैज्ञानिकों ने विभिन्न स्तर की ताप वृद्धि का इस्तेमाल कर कम्प्यूटर सिमुलेशन के जरिए यह पता लगाया कि कितने ग्लेशियर विलुप्त हो जाएंगे, कितनी टन बर्फ पिघलेगी और इससे समुद्र का स्तर कितना बढ़ेगा। दुनिया अब पूर्व-औद्योगिक युग के बाद से 2.7 डिग्री सेल्सियस ताप वृद्धि की राह पर है जिससे साल 2100 तक दुनिया के 32 प्रतिशत ग्लेशियर विलुप्त हो जाएंगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में समुद्र का स्तर ग्लेशियर के मुकाबले बर्फ की चादर पिघलने से ज्यादा बढ़ेगा।
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