8वीं बोर्ड में फेल होने के डर से घर छोड़कर निकला छात्र
अजमेर। अजमेर के क्रिश्चियनगंज थाना क्षेत्र के चौरसियावास रोड पर रहने वाला आठवीं कक्षा का छात्र घर छोड़कर चला गया। उसने जाने से पहले अपने पिता के नाम अपनी नोटबुक में मैसेज छोड़ा। जिसमें लिखा कि आठवीं बोर्ड कक्षा में उसे फेल होने का डर है और इसी के चलते वह घर छोड़ रहा है। बच्चे के चले जाने से परिजन का हाल बेहाल है। वहीं इस बारे में जब मनोरोग विशेषज्ञ डॉ चरण सिंह जिलोवा से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि लाईफ से ज्यादा मार्क्स को जरूरी मानने से ही यह सब हो रहा है।
चौरसियावास रोड पर रहने वाले सुनील जांगिड़ ने बताया कि 14 साल का उसका भाई अभिषेकब्लॉसम स्कूल में कक्षा 8 में पढ़ता है। मंगलवार शाम को वह ट्यूशन से घर लौटा और इसके बाद घर से चला गया। उसके बैग के पास उसकी नोटबुक रखी थी। जिसमें लिखा था कि पापा मैं आठवीं बोर्ड में फेल होने के डर से घर छोड़कर जा रहा हूं। इसके बाद कई स्थानों पर उसको तलाश किया।
सीसीटीवी में आया नजर
सुनील ने बताया कि उसका छोटा भाई अंतिम बार शाम 7 बजे लगभग गांधीनगर में साईकिल पर जाते हुए नजर आया। वहीं इससे पहले उसे ठेले पर नाश्ता करते हुए भी किसी ने देखा था। इसकी रिपोर्ट उन्होंने क्रिश्चियनगंज थाना पुलिस को भी की है। वहीं सुनील व उसके परिजन ने बुधवार सुबह एसपी ऑफिस पहुंचकर भी अभिषेक का पता लगाने की गुहार लगाई। वहीं पुलिस अभिषेक को खोजने का प्रयास कर रही है।
लाईफ और स्वास्थ्य है महत्वपूर्ण
इस बारे में जब जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर और मनोरोग विशेषज्ञ डॉ चरण सिंह जिलोवा से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि अब परीक्षा के मार्क्स को लाईफ से ज्यादा महत्वपूर्ण बना दिया गया है। जिससे स्टूडेंट्स खासे तनाव में रहते हैं। उसे स्कूल और घर दोनों जगह अच्छे नम्बर नहीं लाने पर होने वाले नुकसान के बारे में बताकर डरा दिया जाता है। इसमें स्टूडेंट्स अपनी लाइफ को भूलकर केवल मार्क्स पर ध्यान देता है। यही कारण है कि कोटा में आत्महत्याओं का ग्राफ भी बढ़ रहा है। डॉ. जिलोवा ने कहा कि यदि इन पर अंकुश लगाना है तो बच्चों के साथ दोस्त सा व्यवहार करने और लाईफ व स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण मानने पर जोर देना चाहिए।
सचिन तेंदुलकर दसवीं में हुए फेल
डॉ जिलोवा ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि सचिन तेंदुलकर दसवीं कक्षा में फेल हो गए थे। इसका मतलब यह तो नहीं कि वह अपनी जिंदगी से ही फेल हो गए। तेंदुलकर ने पढ़ाई में नहीं लेकिन क्रिकेट की दुनिया में विश्व भर में नाम कमाया और क्रिकेट के भगवान तक कहे जाने लगे। इसका मतलब यही है कि पेरेंटस बच्चे की रूचि के अनुसार ही काम करवाएं, जिससे कि परिणाम भी अच्छे ही रहे।
(नवीन वैष्णव)