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77 फ्लाई एश लघु इकाइयां बंद होने के कगार पर, 5 हजार श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराया 

09:10 AM Apr 04, 2023 IST | Supriya Sarkaar
77 फ्लाई एश लघु इकाइयां बंद होने के कगार पर  5 हजार श्रमिकों के सामने रोजी रोटी का संकट गहराया 

कोटा। सुपर थर्मल पावर स्टेशन से निकलने वाली फ्लाई एश (सूखी राख) अब केवल सीमेंट उद्योगों व बड़ी निर्माता कंपनियों को ही देने की तैयारी की जा रही है। विद्युत उत्पादन निगम के इस निर्णय से नांता क्षेत्र में फ्लाई एश आधारित ब्लॉक बनाने वाली 77 लघु इकाइयां बंद होने के कगार पर हैं। राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रामसिंह शेखावत ने बताया कि ढाई दशक पहले थर्मल किनारे नांता फ्लाई एश पौंड में ज्यादा मात्रा में सूखी राख जमा हो जाने से पर्यावरण संकट पैदा हो गया था।

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इसका उपयोग करने के लिए रीको की ओर से नांता में थर्मल किनारे पर्यावरण औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया गया। फ्लाई एश ईंट व ब्लॉक तैयार करने के लिए 77 लघु इकाइयों को निशुल्क राख की आपूर्ति की जा रही थी। इससे पांच हजार से अधिक श्रमिकों को रोजगार मिल रहा था। उन्होंने निविदा शर्त में संशोधन कर छोटी इकाइयों को थर्मल से निशुल्क फ्लाई एश की आपूर्ति जारी रखने की मांग की है। शेखावत ने बताया कि विद्युत निगम प्रशासन की ओर से हाल ही में जारी निविदा में एक नई शर्त जोड़ दी गई है।

इसके तहत अब केवल 4.50 लाख मीट्रिक टन फ्लाई एश उठाने वाली सीमेंट कंपनियों को ही निशुल्क राख की आपूर्ति की जाएगी, जबकि 50 टन राख उठाने वाली छोटी इकाइयों को अब नई शर्तां के अनुसार थर्मल से फ्लाई एश देना बंद कर दिया गया है। इससे ये लघु उद्योग बंद पड़े हुए हैं। इनमें कार्यरत हजारों स्थानीय गरीब श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी और परिवार के पोषण का संकट गहरा गया है।

उर्जा मंत्रालय पर सीमेंट कंपनियों को लाभ पहुंचाने का आरोप 

फ्लाई एश प्रॉडक्ट मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बैंस ने बताया कि उर्जा मंत्रालय के निर्देश पर निविदा में नई शर्त जोडकर सीमेंट कंपनियों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। निगम के इस निर्णय से नांता स्थित 77 छोटी फ्लाई एश ईंट व ब्लॉक इकाइयां बद हो जाएंगी। इससे 5 हजार से अधिक श्रमिकों की आजीविका पर संकट आ गया है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय उर्जा मंत्रालय की गाइड लाइन में ऐसी कोई शर्त नहीं है। इसके बावजूद राजस्थान में सीमेंट कंपनियों व बडे निर्माताओं के दबाव में श्रमिकों को बेरोजगार करने का काम किया जा रहा है।

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